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दंडकला छंद

‘मधुमास’

है नव परिवर्तन, सब कुछ नूतन, नवल छटाएँ छाय रही।
सब सुमन सुवासित, भू उल्लासित, शीतल मंद बयार बही।।
खग सारे चहके, उपवन महके, कोयल अगुवाई करती।
मधुरिम तानों से, मृदु गानों से, कुहक-कुहक कर नभ भरती।।

खिलती अमराई, ले अंगड़ाई, पवन हिलोरे ले बहके।
सरसों की क्यारी, दिखती प्यारी, पीत चुनरिया सी लहके।।
देखी रँगरलियाँ, अलि जब कलियाँ, प्रणय गीत गा चूम रहे।
मादक निपुणाई, यह तरुणाई, देख पुष्प सब झूम रहे।।

ऋतुराज सुहाये, कवि मन भाये, काव्य धार कवि आनन में।
है काव्य सँवरता, झर-झर झरता, झरना शब्दों का मन में।।
किसलय का आना, पतझड़ जाना, है नवजीवन गीत यही।
जो खुशियाँ भरदे, दुख सब हरदे, होता सच्चा मीत वही।।

मधुमास सुहाता, हृदय लुभाता, मन अनुरागी नृत्य करे।
बेला अभिसारी, है सुखकारी, अंग-अंग में प्रेम भरे।।
महकाये जल,थल, कोटि सुमन दल, सेज सजाये चाव करे।
शुचि प्रेम परागा, रस अनुरागा, युगल सलोने भाव भरे।।
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दंडकला छंद विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा) <– लिंक

दंडकला छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है। चार पदों के इस छंद में चारों या दो दो पद समतुकांत होते हैं।
प्रत्येक पद 10,8,14 मात्राओं के तीन यति खंडों में विभाजित रहता है।
प्रथम दो आंतरिक यति की समतुकांतता आवश्यक है।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
गुरु + अठकल, अठकल, अठकल + गुरु + लघु + लघु + गुरु

2 2222, 2222, 2222 2112(S) =
10+ 8+14 = 32 मात्रायें

अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं।
पदांत सदैव दीर्घ वर्ण (S) से होना आवश्यक है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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