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महाश्रृंगार छंद

‘चुनावी हल्ला’

चुनावों का है हाहाकार, मचाते नेता खुलकर शोर।
हाथ सब जोड़े बारम्बार, इकठ्ठा भीड़ करे चहुँ ओर।।
प्रलोभन विविध भाँति के बाँट, माँगते जनता से हँस वोट।
रहे कमियाँ सब अपनी छाँट, लुटाकर हरे गुलाबी नोट।।

प्रभावी भाषण है दमदार, नये आश्वासन की है होड़।
श्रेष्ठ अपनी कहते सरकार, प्रबल दावेदारों की दोड़।।
मगर सक्षम का जो दे साथ, वोट का वो असली हकदार।
बेचना मत अपना ईमान, देश का मत करना व्यापार।।

याद मतदाताओं की खींच, लिए आई नेता को गाँव।
मलाई सत्ता की सौगात, बदौलत जिनके सारे ठाँव।।
दिखाते साथी बनकर खास, खिँचाते फोटो चिपकर साथ।
नयन में भर घड़ियाली नीर, मिलाते दीन दुखी से हाथ।।

बने नेता सब तारणहार, भलाई की करते सब बात।
भले दिन मतदाता के चार, अँधेरी आएगी फिर रात।।
चुनावी हल्ले होंगे शान्त, नींद में सोयेंगे फिर लोग।
वर्ष बीतेंगे फिर से पाँच, भोगने दो नेता को भोग।।
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महाश्रृंगार छंद विधान- मात्रिक छंद परिभाषा  <– लिंक

महाश्रृंगार छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 16 16 मात्रा के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है। 16 मात्रा के यति खण्ड की मात्रा बाँट ठीक श्रृंगार छंद वाली है, जो 3 – 2 – 8 – 21(ताल) है। इस प्रकार महाश्रृंगार छंद की मात्रा बाँट प्रति पद :-
3 2 2222 21, 3 2 2222 21 = 16+16 = 32 मात्रा सिद्ध होती है। चार पदों के इस छंद में दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। कोई चाहे तो रोचकता बढाने के लिए प्रथम यति के अंतर्पदों की तुकांतता भी आपस में मिला सकता है।

प्रारंभ के त्रिकल के तीनों रूप 111, 12, 21 मान्य है तथा द्विकल 11 या 2 हो सकता है। अठकल 4 4 या 3 3 2 हो सकता है। अठकल के नियम जैसे प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द का समाप्त न होना, 1 से 4 तथा 5 से 8 मात्रा में पूरित जगण का न होना अनुमान्य हैं। 16 मात्रिक चरण का अंत सदैव ताल (21) से होता है।

महाश्रृंगार छंद का 16 मात्रा का रूप श्रृंगार छंद कहलाता है
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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