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लीला छंद

“शराब लत”

मच जाता नित बवाल।
पत्नी पूछे सवाल।।
क्यूँ पीते तुम शराब?
लत पाली क्यों खराब?

रिश्ते सब तारतार।
चौपट है कारबार।।
रख डाला सब उजाड़।
जीवन मेरा बिगाड़।।

समझो तुम क्यों न बात?
लत ये है आत्मघात।।
लगता है डर अपार।
आदत लो तुम सुधार।।

मद की यह घोर प्यास।
रोके आत्मिक विकास।।
बात न मेरी नकार।
कुछ तो करलो विचार।।
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लीला छंद विधान –  (मात्रिक छंद परिभाषा)

लीला छंद बारह मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है जिसका चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य होता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + जगण(121) =12 मात्राएँ
अठकल में 4+4 या 3+3+2 दोनों हो सकते हैं।
दो दो चरण समतुकांत होने चाहिए।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

  1. शराब जैसी घर बार उजाड़ने वाली लत पर बहुत सुंदर विचार व्यक्त किए हैं आपने। सार्थक सृजन।

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