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वाचिक स्वरूप :- (छंद)

वर्तमान में हिंदी में वाचिक स्वरूप में सृजन करने का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। वाचिक का स्वरूप तो वर्णिक है पर इसके सृजन में न तो वर्णों की संख्या का बंधन है और न ही मात्राओं का। इसमें उच्चारण की प्रमुखता है और इस आधार पर गुरु को दो लघु में भी तोड़ा जा सकता है और कहीं कहीं गुरु वर्ण को लघु रूप में भी लिया जा सकता है। वाचिक में रचे गये मेरे एक मुक्तक का उदाहरण जिसकी मापनी (221  1222)*2 है।

“पहचान ले’ नारी तू, ताकत जो’ छिपी तुझ में,
कारीगरी’ उसकी जो, सब ही तो’ सजी तुझ में,
मंजिल न को’ई ऐसी, तू पा न सके जिसको,
भगवान दिखे उसमें, ममता जो’ बसी तुझ में।”

रचना में चिन्हित कई स्थान पर दीर्घाक्षरों का लघुवत् उच्चारण है।

हिन्दी में विधाता (1222*4), सीता (2122*3 212), स्त्रग्विणी (212*4) जैसे कई छंद वाचिक मापनी में अधिक प्रसिद्ध हैं।

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन, ©
तिनसुकिया

5 Responses

  1. छंदों के एक एक स्वरूप की बहुत ही उपयोगी जानकारियाँ यहाँ संग्रहित हो रही हैं।

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