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सारस छंद ‘जीवन रहस्य’

कार्य असम्भव कुछ भी, है न कभी हो सकता।
ठान रखो निज मन में, रख प्रतिपल उत्सुकता।।
सोच कभी मत यह लो, मैं हरदम असफल हूँ।
पूर्ण भरोसा यह रख, मैं प्रतिभा, मैं बल हूँ।।

ठेस (चोट) कभी लग सकती, लेकिन उठ फिर चलना।
कीच मिले मत घबरा, पंकज बन कर खिलना।।
शौर्य सदा हिय रखना, डरकर तुम मत रुकना।
शीश उठा कर चलना, हार कभी मत झुकना।।

अन्य कभी भी दुख का, कारण हो नहि सकता।
सर्व सुमंगलमय कर, धार रखो नैतिकता।।
धन्य सकल जन होते, स्वर मधुमय जब बिखरे।
भाव दिखे मुख पर भी, सुंदर आभा निखरे।।

सोच करो निर्णय यह, क्या मिलना है हमको।
ज्योति भरो जीवन में, हर निज मन के तम को।।
भाव रखो उत्तम नित, लक्ष्य भरी आकुलता।
भेद यही शास्वत है, ठान लिया वो मिलता।।

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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