पुट छंद “रामनवमी”
पुट छंद विधान –
“ननमय” यति राखें, आठ चारा।
‘पुट’ मधुर रचायें, छंद प्यारा।।
“ननमय” = नगण नगण मगण यगण
पुट छंद विधान –
“ननमय” यति राखें, आठ चारा।
‘पुट’ मधुर रचायें, छंद प्यारा।।
“ननमय” = नगण नगण मगण यगण
चामर छंद विधान –
“राजराजरा” सजा रचें सुछंद ‘चामरं’।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।
“राजराजरा” = रगण जगण रगण जगण रगण
चौपाई छंद विधान
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती।
बृहत्य छंद विधान –
बृहत्य छंद 9 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छन्द है जिसका वर्ण विन्यास 122*3 है। इस चार चरणों के छंद में 2-2 अथवा चारों चरणों में समतुकांतता रखी जाती है। यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है
संयुत छंद विधान:-
“सजजाग” ये दश वर्ण दो।
तब छंद ‘संयुत’ स्वाद लो।।
“सजजाग” = सगण जगण जगण गुरु
112 121 121 2 = 10 वर्ण।
विमलजला छंद विधान:-
“सनलाग” वरण ला।
रचलें ‘विमलजला’।।
“सनलाग” = सगण नगण लघु गुरु
वरूथिनी छंद विधान:-
“जनाभसन,जगा” वरण, सुछंद रच, प्रमोदिनी।
विराम सर,-त्रयी सजत, व चार पर, ‘वरूथिनी’।।
“जनाभसन,जगा” = जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु
लावणी छंद विधान
लावणी छंद सम मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
32 मात्रिक छंद विधान
यह चार पदों का सम मात्रिक छंद है जो ठीक चौपाई का ही द्विगुणित रूप है। इन 32 मात्रा में 16, 16 मात्रा पर यति होती है तथा दो दो पदों में पदान्त तुक मिलाई जाती है।
मंजुभाषिणी छंद विधान:-
“सजसाजगा” रचत ‘मंजुभाषिणी’।
यह छंद है अमिय-धार वर्षिणी।।
“सजसाजगा” = सगण जगण सगण जगण गुरु
पावन छंद विधान:-
“भानजुजस” वरणी, यति आठ सपते।
‘पावन’ यह मधुरा, सब छंद जपते।।
“भानजुजस” = भगण नगण जगण जगण सगण
यति आठ सपते = यति आठ और सात वर्ण पे।
द्रुतविलम्बित छंद विधान :-
“नभभरा” इन द्वादश वर्ण में।
‘द्रुतविलम्बित’ दे धुन कर्ण में।।
नभभरा = नगण, भगण, भगण और रगण।(12 वर्ण)
111 211 211 212
दो दो चरण समतुकांत।
आल्हा छंद या वीर छंद
“आलस्य”
कल पे काम कभी मत छोड़ो, आता नहीं कभी वह काल।
आगे कभी नहीं बढ़ पाते, देते रोज काम जो टाल।।
किले बनाते रोज हवाई, व्यर्थ सोच में हो कर लीन।
मोल समय का नहिं पहचाने, महा आलसी प्राणी दीन।।
आल्हा छंद या वीर छंद
“विधान”
आल्हा छंद या वीर छंद 31 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है। यह चार पदों में रचा जाता है। इसे मात्रिक सवैया भी कहते हैं। इसमें यति16 और 15 मात्रा पर नियत होती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए।
मनहरण घनाक्षरी
“भारत महिमा”
उत्तर बिराज कर, गिरिराज रखे लाज,
तुंग श्रृंग रजत सा, मुकुट सजात है।
मनहरण घनाक्षरी विधान :-
मनहरण को घनाक्षरी छंदों का सिरमौर कहें तो अनुचित नहीं होगा। चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः वर्णों की संख्या 31 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। चारों पदों में समतुकांतता होनी आवश्यक है। 31 वर्ण लंबे पद में 16, 15 पर यति रखना अनिवार्य है। पदान्त हमेशा दीर्घ वर्ण ही रहता है।
घनाक्षरी विवेचन
घनाक्षरी वर्णिक छंद है जिसमें 30 से लेकर 33 तक वर्ण होते हैं परंतु अन्य वर्णिक छन्दों की तरह इसमें गणों का नियत क्रम नहीं है। यह कवित्त के नाम से भी प्रसिद्ध है। घनाक्षरी गणों के और मात्राओं के बंधन में बंधा हुआ छंद नहीं है परंतु इसके उपरांत भी बहुत ही लय युक्त मधुर छंद है और यह लय कुछेक नियमों के अनुपालन से ही सधती है।
सवैया छंद विधान –
सवैया चार चरणों का वर्णिक छंद है जिसके प्रति चरण में 22 से 26 तक वर्ण रहते हैं। चारों चरण समतुकांत होते हैं। सवैया किसी गण पर आश्रित होता है जिसकी 7 या 8 आवृत्ति रहती है।
छंद परिभाषा :-
मात्रा या वर्ण की निश्चित संख्या, ह्रस्व स्वर और दीर्घ स्वर की विभिन्न आवृत्ति, मात्रा बाँट, यति, गति तथा अन्त्यानुप्रास के नियमों में आबद्ध पद्यात्मक इकाई छंद कहलाती है।
वाचिक स्वरूप :-
वर्तमान में हिंदी में वाचिक स्वरूप में सृजन करने का प्रचलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। वाचिक का स्वरूप तो वर्णिक है पर इसके सृजन में न तो वर्णों की संख्या का बंधन है और न ही मात्राओं का। इसमें उच्चारण की प्रमुखता है और इस आधार पर गुरु को दो लघु में भी तोड़ा जा सकता है और कहीं कहीं गुरु वर्ण को लघु रूप में भी लिया जा सकता है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।