जनहरण घनाक्षरी “ब्रज-छवि”
जनहरण घनाक्षरी विधान :-
चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। इसमें पद के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल पदान्त दीर्घ रहता है।
जनहरण घनाक्षरी विधान :-
चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। इसमें पद के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल पदान्त दीर्घ रहता है।
सिंहनाद छंद विधान –
“सजसाग” वर्ण दश राखो।
तब ‘सिंहनाद’ मधु चाखो।।
“सजसाग” = सगण जगण सगण गुरु।
गिरिधारी छंद विधान –
“सनयास” अगर तू सूत्र रखे।
तब छंदस ‘गिरिधारी’ हरखे।।
“सनयास” = सगण, नगण, यगण, सगण
गाथ छंद विधान –
सूत्र राच “रसोगागा”।
‘गाथ’ छंद मिले भागा।।
“रसोगागा” = रगण, सगण, गुरु गुरु
निधि छंद विधान –
यह नौ मात्रा का सम मात्रिक चार चरणों का छंद है। इसका चरणान्त ताल यानी गुरु लघु से होना आवश्यक है। बची हुई 6 मात्राएँ छक्कल होती हैं।
तोमर छंद विधान –
यह 12 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। अंत ताल से आवश्यक। इसकी मात्रा बाँट:- द्विकल-सप्तकल-3 (केवल 21)
स्त्रग्धरा छंद विधान –
“माराभाना ययाया”, त्रय-सत यति दें, वर्ण इक्कीस या में।
बैठा ये सूत्र न्यारा, मधुर रसवती, ‘स्त्रग्धरा’ छंद राचें।।
“माराभाना ययाया”= मगण, रगण, भगण, नगण, तथा लगातार तीन यगण। (कुल 21 अक्षरी)
वंशस्थ छंद विधान –
“जताजरौ” द्वादश वर्ण साजिये।
प्रसिद्ध ‘वंशस्थ’ सुछंद राचिये।।
“जताजरौ” = जगण, तगण, जगण, रगण
शिखरिणी छंद विधान –
रखें छै वर्णों पे, यति “यमनसाभालग” रचें।
चतुष् पादा छंदा, सब ‘शिखरिणी’ का रस चखें।।
“यमनसाभालग” = यगण, मगण, नगण, सगण, भगण लघु गुरु ( कुल 17 वर्ण)
मंदाक्रान्ता छंद विधान –
“माभानाता,तगग” रच के, चार छै सात तोड़ें।
‘मंदाक्रान्ता’, चतुष पद की, छंद यूँ आप जोड़ें।।
“माभानाता, तगग” = मगण, भगण, नगण, तगण, तगण, गुरु गुरु (कुल 17 वर्ण)
पुटभेद छंद विधान –
“राससाससुलाग” सुछंद रचें अति पावनी।
वर्ण सप्त दशी ‘पुटभेद’ बड़ी मन भावनी।।
“राससाससुलाग” = रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु।
पुण्डरीक छंद विधान –
“माभाराया” गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस ‘पुण्डरीक’ न्यारी।।
“माभाराया” = मगण भगण रगण यगण।
पुट छंद विधान –
“ननमय” यति राखें, आठ चारा।
‘पुट’ मधुर रचायें, छंद प्यारा।।
“ननमय” = नगण नगण मगण यगण
चामर छंद विधान –
“राजराजरा” सजा रचें सुछंद ‘चामरं’।
पक्ष वर्ण छंद गूँज दे समान भ्रामरं।।
“राजराजरा” = रगण जगण रगण जगण रगण
चौपाई छंद विधान
चौपाई 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती।
बृहत्य छंद विधान –
बृहत्य छंद 9 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छन्द है जिसका वर्ण विन्यास 122*3 है। इस चार चरणों के छंद में 2-2 अथवा चारों चरणों में समतुकांतता रखी जाती है। यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है
संयुत छंद विधान:-
“सजजाग” ये दश वर्ण दो।
तब छंद ‘संयुत’ स्वाद लो।।
“सजजाग” = सगण जगण जगण गुरु
112 121 121 2 = 10 वर्ण।
विमलजला छंद विधान:-
“सनलाग” वरण ला।
रचलें ‘विमलजला’।।
“सनलाग” = सगण नगण लघु गुरु
वरूथिनी छंद विधान:-
“जनाभसन,जगा” वरण, सुछंद रच, प्रमोदिनी।
विराम सर,-त्रयी सजत, व चार पर, ‘वरूथिनी’।।
“जनाभसन,जगा” = जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु
लावणी छंद विधान
लावणी छंद सम मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।