वर्णिक छंद परिभाषा
वर्णिक छंद परिभाषा
वर्णिक छंद उसे कहा जाता है जिसके प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम तथा वर्णों की संख्या नियत रहती है। जब लघु गुरु का क्रम और उनकी संख्या निश्चित है तो मात्रा स्वयंमेव सुनिश्चित है।
वर्णिक छंद परिभाषा
वर्णिक छंद उसे कहा जाता है जिसके प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम तथा वर्णों की संख्या नियत रहती है। जब लघु गुरु का क्रम और उनकी संख्या निश्चित है तो मात्रा स्वयंमेव सुनिश्चित है।
मात्रिक छंद परिभाषा
मात्रिक छंद के पद में वर्णों की संख्या और वर्णों का क्रम निर्धारित नहीं रहता है परंतु मात्रा की संख्या निर्धारित रहती है। हिन्दी में वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों का प्रचलन अधिक है। मात्रिक छंदों की लय भी बहुत मधुर तथा लोचदार होती है।
असबंधा छंद विधान:
“मातानासागाग” रचित ‘असबंधा’ है।
ये तो प्यारी छंद सरस मधु गंधा है।।
“मातानासागाग” = मगण, तगण, नगण, सगण गुरु गुरु
222 221 111 112 22= 14 वर्ण
दो दो या चारों चरण समतुकांत।
32 मात्रिक छंद विधान:
यह चार पदों का सम पद मात्रिक छंद है जो ठीक चौपाई का ही द्विगुणित रूप है। इन 32 मात्रा में 16, 16 मात्रा पर यति होती है तथा दो दो पदों में पदान्त तुक मिलाई जाती है। 16 मात्रा के अंश का विधान ठीक चौपाई वाला ही है।
इन्द्रवज्रा छंद विधान:
“ताता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
तो ‘इन्द्रवज्रा’ शुभ छंद पाओ।
“ताता जगेगा” = तगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
221 221 121 22
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उपेन्द्रवज्रा छंद विधान:
“जता जगेगा” यदि सूत्र राचो।
‘उपेन्द्रवज्रा’ तब छंद पाओ।
“जता जगेगा” = जगण, तगण, जगण, गुरु, गुरु
121 221 121 22
**************
उपजाति छंद विधान:
उपेंद्रवज्रा अरु इंद्रवज्रा।
दोनों मिले तो ‘उपजाति’ छंदा।।
अनुष्टुप छंद विधान:
यह छन्द अर्धसमवृत्त है । इस के प्रत्येक चरण में आठ वर्ण होते हैं । पहले चार वर्ण किसी भी मात्रा के हो सकते हैं । पाँचवाँ लघु और छठा वर्ण सदैव गुरु होता है । सम चरणों में सातवाँ वर्ण ह्रस्व और विषम चरणों में गुरु होता है। आठवाँ वर्ण संस्कृत में तो लघु या गुरु कुछ भी हो सकता है। संस्कृत में छंद के चरण का अंतिम वर्ण लघु होते हुये भी दीर्घ उच्चरित होता है जबकि हिन्दी में यह सुविधा नहीं है। अतः हिन्दी में आठवाँ वर्ण सदैव दीर्घ ही होता है।
गुरु की गरिमा भारी, उसे नहीं बिगाड़ना।
हरती विपदा सारी, हितकारी प्रताड़ना।।
मानव छंद विधान:
मानव छंद 14 मात्रिक चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। तुक दो दो चरण की मिलाई जाती है। 14 मात्रा की बाँट 12 2 है। 12 मात्रा में तीन चौकल हो सकते हैं, एक अठकल एक चौकल हो सकता है या एक चौकल एक अठकल हो सकता है।
त्रिभंगी छंद विधान –
त्रिभंगी प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। यह 4 पद का छंद है। प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत होनी आवश्यक है। परन्तु अभ्यांतर समतुकांतता यदि तीनों यति में निभाई जाय तो सर्वश्रेष्ठ है।
विधाता छंद विधान:
विधाता छंद 28 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छन्द है जो 14 – 14 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है।
संरचना के आधार पर विधाता छंद निश्चित वर्ण विन्यास पर आधारित मापनी युक्त छंद है। जिसकी मापनी 1222*4 है। इसमें गुरु (2) को दो लघु (11) में तोड़ा जा सकता है जो सदैव एक ही शब्द में साथ साथ रहने चाहिए।
यह छंद वाचिक स्वरूप में अधिक प्रसिद्ध है जिसमें उच्चारण के आधार पर काफी लोच संभव है। वाचिक स्वरूप में यति के भी कोई रूढ नियम नहीं है और उच्चारण अनुसार गुरु वर्ण को लघु मानने की भी छूट है।
दुर्मिल सवैया विधान:
यह 24 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया सगण (112) पर आश्रित है, जिसकी 8 आवृत्ति प्रति चरण में रहती है। इसकी संरचना लघु लघु गूरु × 8 है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।