अहीर छंद “प्रदूषण”
अहीर छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण 121 से होना आवश्यक है। इन 11 मात्राओं का विन्यास ठीक दोहा छंद के 11 मात्रिक सम चरण जैसा है बस 8वीं मात्रा सदैव लघु रहे।
अहीर छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत जगण 121 से होना आवश्यक है। इन 11 मात्राओं का विन्यास ठीक दोहा छंद के 11 मात्रिक सम चरण जैसा है बस 8वीं मात्रा सदैव लघु रहे।
चन्द्रिका छंद विधान –
“ननततु अरु गा”, ‘चन्द्रिका’ राचते।
यति सत अरु छै, छंद को साजते।।
111 111 2,21 221 2 = 13 वर्ण, 7, 6 यति।
चंचला छंद विधान –
“राजराजराल” वर्ण षोडसी रखो सजाय।
‘चंचला’ सुछंद राच आप लें हमें लुभाय।।
21×8 = 16 वर्ण प्रत्येक चरण।
गीतिका छंद 26 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 12 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है। इसकी मापनी 2122*3 + 212 है।
घनश्याम छंद विधान –
“जजाभभभाग”, में यति छै, दश वर्ण रखो।
रचो ‘घनश्याम’, छंद अतीव ललाम चखो।।
“जजाभभभाग” = जगण जगण भगण भगण भगण गुरु।
रथोद्धता छंद विधान –
“रानरा लघु गुरौ” ‘रथोद्धता’।
तीन वा चतुस तोड़ के सजा।
“रानरा लघु गुरौ” = 212 111 212 12
गजपति छंद विधान –
“नभलगा” गण रखो।
‘गजपतिम्’ रस चखो।।
“नभलगा” नगण भगण लघु गुरु
( 111 211 1 2)
विधाता छंद 28 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 14 – 14 मात्रा के दो यति खंडों में विभक्त रहता है।
शालिनी छंद विधान –
राचें बैठा, सूत्र “मातातगागा”।
गावें प्यारी, ‘शालिनी’ छंद रागा।।
“मातातगागा”= मगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु
(222 221 221 22)
कुसुमसमुदिता छंद विधान –
“भाननगु” गणन रचिता।
छंदस ‘कुसुमसमुदिता’।।
“भाननगु” = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)
किशोर छंद विधान –
किशोर छंद मूल रूप से एक मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद मे 22 मात्राएँ होती हैं तथा यति 16 व 6 मात्राओं पर होती है।
हरिणी छंद विधान –
मधुर ‘हरिणी’, राचें बैठा, “नसामरसालगे”।
प्रथम यति है, छै वर्णों पे, चतुष् फिर सप्त पे।
“नसामरसालगे” = नगण, सगण, मगण, रगण, सगण, लघु और गुरु।
111 112, 222 2,12 112 12
कामदा छंद / पंक्तिका छंद विधान –
“रायजाग” ये वर्ण राखते।
छंद ‘कामदा’ धीर चाखते।।
“रायजाग” = रगण यगण जगण गुरु (212 122 121 2)
कलाधर छंद विधान –
पाँच बार “राज” पे “गुरो” ‘कलाधरं’ सुछंद।
षोडशं व पक्ष पे विराम आप राखिए।।
ये घनाक्षरी समान छंद है प्रवाहमान।
राचिये इसे सभी पियूष-धार चाखिये।।
पाँच बार “राज” पे “गुरो” = (रगण+जगण)*5 + गुरु। (212 121)*5+2
यानी गुरु लघु की 15 आवृत्ति के बाद गुरु यानी
21×15 + 2 तथा 16 और पक्ष=15 पर यति।
कनक मंजरी छंद विधान:-
प्रथम रखें लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ रख लें।
सु’कनक मंजरि’ छंद रचें यति तेरह वर्ण तथा दश पे।।
लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ = 4लघु+6भगण(211)+1गुरु]=23 वर्ण
वागीश्वरी सवैया विधान – यह 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया यगण (122) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति तथा चरण के अंतमें लघु गुरु वर्ण जुड़ने से होती है।
(122 122 122 122 122 122 122 12)
कृपाण घनाक्षरी विधान –
चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 32 होती है। पद में 8, 8, 8, 8 वर्ण पर यति रखना अनिवार्य है। पद के चारों चरणों का अंत गुरु वर्ण (S) तथा लघु वर्ण (1) से होना आवश्यक है। हर यति समतुकांत होनी भी आवश्यक है।
कण्ठी छंद विधा –
“जगाग” वर्णी।
सु-छंद ‘कण्ठी’।।
“जगाग” = जगण गुरु गुरु
121 2 2
5 वर्ण प्रति चरण का वर्णिक छंद। 4 चरण,
2-2 चरण समतुकांत
सार छंद जो कि ललितपद छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का अत्यंत गेय सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 28 मात्रा होती है। यति 16 और 12 मात्रा पर है।
“दस्यु राज रत्नाकर जग में, वाल्मीकि कहलाए।
उल्टा नाम राम का इनको, नारद जी जपवाए।।”
इंदिरा छंद / राजहंसी छंद विधान:-
“नररलाग” से छंद लो तिरा।
मधुर ‘राजहंसी’ व ‘इंदिरा’।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।