इंदिरा छंद “पथिक”
इंदिरा छंद / राजहंसी छंद विधान:-
“नररलाग” से छंद लो तिरा।
मधुर ‘राजहंसी’ व ‘इंदिरा’।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
इंदिरा छंद / राजहंसी छंद विधान:-
“नररलाग” से छंद लो तिरा।
मधुर ‘राजहंसी’ व ‘इंदिरा’।।
“नररलाग” = नगण रगण रगण + लघु गुरु
मत्तगयंद सवैया छंद की संरचना प्रति चरण 211× 7 + 22 है।
पाप बढ़े चहुँ ओर भयानक हाथ कृपाण त्रिशूलहु धारो।
रक्त पिपासु लगे बढ़ने दुखके महिषासुर को अब टारो।
आँसू छंद प्रति पद 28 मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है। छंद का पद 14 – 14 मात्रा के दो यति खण्डों में विभक्त रहता है।
भारत तू कहलाता था, सोने की चिड़िया जग में।
तुझको दे पद जग-गुरु का, सब पड़ते तेरे पग में।
आल्हा छंद “अग्रदूत अग्रवाल”
अग्रोहा की नींव रखे थे, अग्रसेन नृपराज महान।
धन वैभव से पूर्ण नगर ये, माता लक्ष्मी का वरदान।।
रास छंद विधान –
रास छंद 22 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है जिसमें 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है। पदान्त 112 से होना आवश्यक है। मात्रा बाँट प्रथम और द्वितीय यति में एक अठकल या 2 चौकल की है। अंतिम यति में 2 – 1 – 1 – 2(ऽ) की है।
कुण्डलिया छंद “विधान”
कुण्डलिया छंद दोहा छंद और रोला छंद के संयोग से बना विषम छंद है। इस छंद में ६ पद होते हैं तथा प्रत्येक पद में २४ मात्राएँ होती हैं। यह छंद दो छंदों के मेल से बना है जिसके पहले दो पद दोहा छंद के तथा शेष चार पद रोला छंद से बने होते हैं।
दोहा छंद “श्राद्ध-पक्ष”
श्राद्ध पक्ष में दें सभी, पुरखों को सम्मान।
वंदन पितरों का करें, उनका धर सब ध्यान।।
रोला छंद विधान –
रोला छंद चार पदों का सम मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 24 मात्रा तथा पदान्त गुरु अथवा 2 लघु से होना आवश्यक है।
दोहा छंद विधान –
दोहा एक अर्द्धसम मात्रिक छन्द है। यह द्विपदी छंद है जिसके प्रति पद में 24 मात्रा होती है।प्रत्येक पद 13, 11 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
भुजंगप्रयात छंद विधान –
4 यगण (122) यानी कुल 12 वर्ण प्रत्येक चरण की वर्णिक छंद। चार चरण दो दो समतुकांत।
वसन्ततिलका छंद विधान –
“ताभाजजागगु” गणों पर वर्ण राखो।
प्यारी ‘वसन्ततिलका’ तब छंद चाखो।।
“ताभाजजागगु” = तगण, भगण, जगण, जगण और दो गुरु।
मुक्तामणि छंद विधान –
दोहे का लघु अंत जब, सजता गुरु हो कर के।
‘मुक्तामणि’ प्रगटे तभी, भावों माँहि उभर के।।
मुक्तामणि छंद चार पदों का 25 मात्रा प्रति पद का सम पद मात्रिक छंद है जो 13 और 12 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
भक्ति छंद विधान –
“तायाग” सजी क्या है।
ये ‘भक्ति’ सुछंदा है।।
“तायाग” = तगण यगण, गुरु
मालिनी छंद विधान –
“ननिमयय” गणों में, ‘मालिनी’ छंद जोड़ें।
यति अठ अरु सप्ता, वर्ण पे आप तोड़ें।।
“ननिमयय” = नगण, नगण, मगण, यगण, यगण।
111 111 22,2 122 122
शार्दूलविक्रीडित छंद विधान –
“मैं साजूँ सतताग” वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, ‘शार्दूलविक्रीडितम्’।।
“मैं साजूँ सतताग” = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222 112 121 112// 221 221 2
यशोदा छंद विधान –
रखो “जगोगा” ।
रचो ‘यशोदा’।।
“जगोगा” = जगण, गुरु गुरु
121 2 2= 5 वर्ण की वर्णिक छंद।
रूपमाला छंद / मदन छंद विधान –
रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है।
शक्ति छंद विधान –
यह (122 122 122 12) मापनी पर आधारित 18 मात्रा का मात्रिक छंद है। चूंकि यह एक मात्रिक छंद है अतः गुरु (2) वर्ण को दो लघु (11) में तोड़ने की छूट है।
उड़ियाना छंद विधान –
उड़ियाना छंद 22 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। यह प्रति पद 22 मात्रा का छंद है। इस में 12,10 मात्रा पर यति विभाजन है। यति से पहले त्रिकल आवश्यक।
जनहरण घनाक्षरी विधान :-
चार पदों के इस छन्द में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 31 होती है। इसमें पद के प्रथम 30 वर्ण लघु रहते हैं तथा केवल पदान्त दीर्घ रहता है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।