रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”
रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”
राम रसायन के दाता, हनुमान सभी पर कृपा करें।
त्राहि-त्राहि के बोल सुनें, प्रभु अपना करतल वरद धरें।
कल्पनेश अति दीन-दुखी, नित यशस् आप का है गाता।
तनिक अनुग्रह ही करके, हरि इसके चित्त विकार हरें।1।
रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”
राम रसायन के दाता, हनुमान सभी पर कृपा करें।
त्राहि-त्राहि के बोल सुनें, प्रभु अपना करतल वरद धरें।
कल्पनेश अति दीन-दुखी, नित यशस् आप का है गाता।
तनिक अनुग्रह ही करके, हरि इसके चित्त विकार हरें।1।
पदपादाकुलक छंद विधान – यह 16 मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है। इसके प्रारंभ में द्विकल आना आवश्यक है। इसका मात्रा विन्यास:-
2+4+4+4+2 = 16 मात्रा है।
वाणी बोलो,सुनकर जिसे,काल भी जाग जाए।
आगे आओ,सुरभि जग के,नाम बाँटो सुहाए।।
आभा फैले,धरणि तल में,गान पंछी सुनाएँ।
प्रातः जागे,सब जन जगें,सौख्य का सार पाएँ।।
मंदाक्रान्ता छंद
मंदाक्रान्ता छंद
गाना होता,मगन मन से,राम का नाम प्यारे।
आओ गाएँ,हम-तुम सभी,त्याग दें काम सारे।।
मिथ्या जानो,जगत भर के,रूप-लावण्य पाए।
वेदों के ये,वचन पढ़ के,काव्य के छंद गाए।।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।