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Author: Baba Kalpnesh

Baba Kalpnesh

Baba Kalpnesh

Kalpneshनाम-बैजनाथ मिश्र प्रचलित नाम-बाबा कल्पनेश जन्मस्थान-सारंगापुर-प्रयागराज-उत्तर प्रदेश माता-स्वर्गीया हुबराजी देवी पिता-स्वर्गीय पंडित रामजतन मिश्र शिक्षा-साहित्याचार्य प्रकाशित पुस्तकें-श्री गुरुचालीसा,श्री सिद्ध बाबा चालीसा,संघर्ष के बीज (काव्य संग्रह),आत्मकथा है मस्ती(कविता संग्रह)उत्तराखंड संस्कृत निदेशालय द्वारा प्रकाशित,मनुजता की नव पाठशाला। कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित।पत्र-प्रतिकाओं में कविताएँ प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में श्री गीता कुटीर-12,गंगा लाइन, स्वर्गाश्रम-ऋषिकेश में रहकर स्वतंत्र साहित्य साधना।

रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”

रुचिरा छंद “भक्ति मुक्तक”

राम रसायन के दाता, हनुमान सभी पर कृपा करें।
त्राहि-त्राहि के बोल सुनें, प्रभु अपना करतल वरद धरें।
कल्पनेश अति दीन-दुखी, नित यशस् आप का है गाता।
तनिक अनुग्रह ही करके, हरि इसके चित्त विकार हरें।1।

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पदपादाकुलक छंद “नव वर्ष”

पदपादाकुलक छंद विधान – यह 16 मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है। इसके प्रारंभ में द्विकल आना आवश्यक है। इसका मात्रा विन्यास:-
2+4+4+4+2 = 16 मात्रा है।

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मंदाक्रान्ता छंद “जागो-जागो”

वाणी बोलो,सुनकर जिसे,काल भी जाग जाए।
आगे आओ,सुरभि जग के,नाम बाँटो सुहाए।।
आभा फैले,धरणि तल में,गान पंछी सुनाएँ।
प्रातः जागे,सब जन जगें,सौख्य का सार पाएँ।।

मंदाक्रान्ता छंद

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मंदाक्रान्ता छंद “साध्य की खींच रेखें”

मंदाक्रान्ता छंद
गाना होता,मगन मन से,राम का नाम प्यारे।
आओ गाएँ,हम-तुम सभी,त्याग दें काम सारे।।
मिथ्या जानो,जगत भर के,रूप-लावण्य पाए।
वेदों के ये,वचन पढ़ के,काव्य के छंद गाए।।

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