कुण्डलिया छंद ‘मोबाइल’
कुण्डलिया छंद ‘मोबाइल’ मोबायल अर्धांगिनी, सब पतियों की आज। उसके खातिर छोड़ दे, पतिगण दैनिक काज।। पतिगण दैनिक काज, छोड़ मोबायल लेते। पत्नी पर कर
कुण्डलिया छंद ‘मोबाइल’ मोबायल अर्धांगिनी, सब पतियों की आज। उसके खातिर छोड़ दे, पतिगण दैनिक काज।। पतिगण दैनिक काज, छोड़ मोबायल लेते। पत्नी पर कर
दोहा छंद “विवाह में गणपति निमंत्रण” प्रथम निमंत्रण आपको, विघ्न विनायक नाथ। पग पग पर रहना सदा, आप ब्याह में साथ।। सकल सुखद संजोग से,
कुलदेवी पर दोहे प्रथम विनायक को भजें, प्रभु का लें फिर नाम।। कुलदेवी जयकार से, शुरू करें शुभ काम।। सर्व सुमंगल दायिनी, हे कुलदेवी मात।
लावणी छंद, पर्यायवाची कविता पर्यायवाची शब्द याद करने का छंदबद्ध कविता के माध्यम से आसान उपाय- एक अर्थ के विविध शब्द ही, कहलाते पर्याय सभी। भाषा
बादल दादा दादी जैसे,
‘कुकुभ छंद’
श्वेत, सुनहरे, काले बादल, आसमान पर उड़ते हैं।
धवल केश दादा-दादी से, मुझे दिखाई पड़ते हैं।।
सोरठा छंद ‘सोरठा विधान’ लिखें सोरठा आप, दोहे को उल्टा रचें। अनुपम छोड़े छाप, लिखे सोरठा जो मनुज।। अठकल पाछे ताल, विषम चरण में राखिये।
किरीट सवैया “काव्य-मंच” मंच बढ़े कविता सिमटी अब, फूहड़ हास्य परोस रहे कवि। लुप्त हुए शुचि छंद सनातन, धूमिल होय रही कविता छवि।। मान मिले
दोहा छंद ‘एक जनवरी’ अभिनंदन उल्लास का, करता भारतवर्ष। नये साल का आगमन, रोम रोम में हर्ष।। हैप्पी हैप्पी न्यू इयर, हैप्पी हैं सब लोग।
ताटंक छंद (गीत) ‘भँवर’ बीच भँवर में अटकी नैया, मंजिल छू ना पाई है। राहों में अपने दलदल की, खोदी मैंने खाई है।। कच्ची माटी
दोहा छंद ‘असम प्रदेश’ माँ कामाख्या धाम है, ब्रह्मपुत्र नद धार। पत्ता पत्ता रसभरा, सुखद असम का सार।। धरती शंकरदेव की, लाचित का अभिमान। कनकलता
शार्दूलविक्रीडित छंद ‘माँ लक्ष्मी वंदना’ सारी सृष्टि सदा सुवासित करे, देती तुम्ही भव्यता। लक्ष्मी हे कमलासना जगत में, तेरी बड़ी दिव्यता।। पाते वो धन सम्पदा
मणिमध्या छंद विधान-
मणिमध्या मापनीयुक्त वर्णिक छंद है। इसमें 9 वर्ण होते हैं।
इसका मात्राविन्यास निम्न है-
211 222 112
दोहा छंद ‘जय पितरजी’ पितरों के सम्मान में, नमन नित्य सौ बार। भाव सुमन अर्पण करूँ, आप करो
लावणी छंद ‘एक चिट्ठी माँ के नाम’ लिखने बैठी माँ को चिट्ठी, हाल सभी बतलाती है। नन्हे मन की अति व्याकुलता, खोल हृदय दिखलाती है।।
लावणी छंद (गीत) ‘दिल मेरा ही छला गया’ क्यूँ शब्दों के जादूगर से, दिल मेरा ही छला गया। उमड़ घुमड़ बरसाया पानी, बादल था वो
विष्णुपद छंद ‘मंजिल पायेंगे’ आगे हरदम बढ़ने का हम, लक्ष्य बनायेंगे। चाहे रोड़े हों राहों में, मंजिल पायेंगे।। नवल सपन आँखों में लेकर, हम सोपान
सरसी छंद ‘मुन्ना मेरा सोय’ ओ मेघा चुप हो जा मेघा, मुन्ना मेरा सोय। खिल-खिल हँसता कभी मुलकता, मधुर स्वप्न में खोय।। घड़-घड़ भड़-भड़ जोर-जोर
चौपाई छंद ‘माँ की वेदना’ बेटी ने खुशियाँ बरसाई। जिस दिन वो दुनिया में आई।। उसके आने से मन महका। कोना-कोना घर का चहका।। जीवन
मोहन छंद ‘होली प्रेम’ केशरी, घटा घनी, वृक्ष सकल, झूम रहे। मोहनी, बयार को, मोर सभी, चूम रहे।। दृश्य यह, प्रेमभरा, राधा को, तंग करे।
आल्हा छंद ‘सैनिक’ मैं सैनिक निज कर्तव्यों से, कैसे सकता हूँ मुँह मोड़। प्रबल भुजाओं की ताकत से, रिपु दल का दूँगा मुँह तोड़।। मातृभूमि
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।