त्रिभंगी छंद, ‘ससुराल’
त्रिभंगी छंद विधान-
त्रिभंगी प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है।
त्रिभंगी छंद विधान-
त्रिभंगी प्रति पद 32 मात्राओं का सम पद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद में 10, 8, 8, 6 मात्राओं पर यति होती है।
ताटंक छंद गीत
प्रतिमाओं की पूजा करने, हम मंदिर में जाते हैं।
जिस घर मात-पिता खुश रहते, उस घर ईश्वर आते हैं।
हीर छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 6, 6, 6 5 के तीन यति खंडों में विभक्त रहती है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
S22, 222, 222 S1S
अवतार छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 13 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 2222 12, 2 3 S1S
संपदा छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 11 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 22221, 2222 121
ताटंक छंद
सुंदर स्वच्छ बनेगा भारत, ऐसा शुभ दिन आएगा।
तन मन धन से भारतवासी ,जब आगे बढ़ जाएगा।।
अलग-अलग आलाप छोड़कर, मिलकर सुर में गाएगा ।
कुकुभ छंद गीत
जब-जब आह्लादित होता मन, गीत प्रणय के गाती हूँ,
खुशियाँ लेकर आये जो क्षण, फिर उनको जी जाती हूँ।
लावणी छंद गीत
“बेटियाँ”
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
“हास्य कुण्डलिया”
बहना तुमसे ही कहूँ, अपने हिय की बात,
जीजा तेरा कवि बना, बोले सारी रात।
बोले सारी रात, नींद में कविता गाये,
भृकुटी अपनी तान, वीर रस गान सुनाये।
प्रकट करे आभार, गजब ढाता यह कहना,
धरकर मेरा हाथ, कहे आभारी बहना।
कुण्डलिया छंद, ‘गंगा मैया’
गंगा मैया आपकी,शरण पड़े नर नार।
पावन मन निर्मल करो, काटो द्वेष विकार।।
पंचचामर छंद “हनुमान स्तुति”
उपासना करें सभी, महाबली कपीश की,
विराट दिव्य रूप की, दयानिधान ईश की।
निश्चल छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 16 और 7 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2222 2222, 22S1
लावणी छंद सम-पद मात्रिक छंद है। इस छंद में चार पद होते हैं, जिनमें प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं।
प्रत्येक पद दो चरण में बंटा हुआ रहता है जिनकी यति 16-14 पर निर्धारित होती है।
शोभन छंद जो कि सिंहिका छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 14 और 10 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
5 2 5 2, 212 1121
सुमित्र छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 10 और 14 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका चरणादि एवं चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
121 222, 2222 (अठकल) 2121
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
सारस छंद 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। चरणादि गुरु वर्ण तथा विषमकल होना अनिवार्य है। चरणान्त सगण (112) से होता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2112 2112, 2112 2112
दिगपाल छंद जो कि मृदुगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है।
यह 12 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2212 122, 2212 122
मदनाग छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 17-8 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1222 1222 12, 222S
सुगीतिका छंद विधान-
सुगीतिका छंद 25 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जो 15-10 मात्राओं के दो यति खण्ड में विभक्त रहता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
1 2122*2, 2122 21
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।