खरारी छंद “जलियाँवाला बाग”
खरारी छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 8, 6, 8, 10 मात्राओं पर यति आवश्यक है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 222, 222, 2222, 2 2222
खरारी छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 8, 6, 8, 10 मात्राओं पर यति आवश्यक है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 222, 222, 2222, 2 2222
पद्मावती छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः 10, 8, 14 मात्रा पर यति आवश्यक है।
प्रथम दो अंतर्यतियों में समतुकांतता आवश्यक है। इसका मात्रा विन्यास –
2 2222, 2222, 2222 22 S = 10+ 8+ 14 = 32 मात्रा।
चुलियाला छंद विधान –
चुलियाला छंद एक अर्द्धसम मात्रिक छंद है जिसके प्रति पद में 29 मात्रा होती है। प्रत्येक पद 13, 16 मात्रा के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। यह दोहे के जैसा ही एक द्वि पदी छंद होता है जो दोहे के अंत में 1211 ये पाँच मात्राएँ जुड़ने से बनता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है –
2222 212, 2222 21 1211 = (चुलियाला) = 13, 8-21-1211 = 29 मात्रा।
सुमंत छंद विधान –
सुमंत छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद है।
छंद के 11 मात्रिक प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली यानी अठकल + ताल (21) है।
अठकल में 4+4 या 3+3+2 दोनों हो सकते हैं।
9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + गुरु गुरु (S S)है।
मालिक छंद विधान –
मालिक छंद एक सम मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति चरण 20 मात्रा रहती हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + अठकल + गुरु गुरु = 8, 8, 2, 2 = 20 मात्रा।
योग छंद विधान –
योग छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद 20 मात्रा रहती हैं। पद 12 और 8 मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहता है।
अच्छाई जब जीती, हरा बुराई।
जग ने विजया दशमी, तभी मनाई।।
नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है।
जय जग जननी जगदंबा, जय जया।
नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।।
दिंडी छंद विधान –
दिंडी छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं जो ९ और १० मात्रा के दो यति खंडों में विभाजित रहती हैं।दोनों चरणों की मात्रा बाँट निम्न प्रकार से है।
त्रिकल, द्विकल, चतुष्कल = ३ २ ४ = ९ मात्रा।
छक्कल, दो गुरु वर्ण (SS) = १० मात्रा।
तमाल छंद विधान –
तमाल छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
चौपाई + गुरु लघु (16+3=19)
सुमेरु छंद विधान –
सुमेरु छंद 1222 1222 122 मापनी का एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। सुमेरु छंद में 12,7 अथवा 10,9 पर दो तरह से यति निर्वाह किया जा सकता है।
लावणी छंद “राधा-कृष्ण”
लता, फूल, रज के हर कण में, नभ से झाँक रहे घन में।
राधे-कृष्णा की छवि दिखती, वृन्दावन के निधिवन में।।
राधा-माधव युगल सलोने, निशदिन वहाँ विचरते हैं।
प्रेम सुधा बरसाने भू पर, लीलाएँ नित करते हैं।।
लीला छंद विधान –
लीला छंद बारह मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद है जिसका चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य होता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + जगण(121) =12 मात्राएँ।
हंसगति छंद विधान –
हंसगति छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद है जिसमें ग्यारहवीं और नवीं मात्रा पर विराम होता है। प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली तथा 9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + 4 है।
शास्त्र छंद विधान –
शास्त्र छंद 1222 1222 1221 मापनी पर आधारित 20 मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है।
बिहारी छंद विधान –
यह (221 1221 12, 21 122) मापनी पर आधारित 22 मात्रा का मात्रिक छंद है।
शैलसुता छंद विधान –
शैलसुता छंद चार चरण का वर्णिक छंद होता है जिसमें दो- दो चरण समतुकांत होते हैं।
4 लघु + 6भगण (211)
+1 गुरु = 23 वर्ण
1111 + 211*6 + 2
कुकुभ छंद विधान –
कुकुभ छंद सम-मात्रिक छंद है। इस चार पदों के छंद में प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद 16 और 14 मात्रा के दो चरणों में बंटा हुआ रहता है। 14 मात्रिक चरण की अंतिम 4 मात्रा सदैव 2 गुरु (SS) होती हैं तथा बची हुई 10 मात्राएँ अठकल + द्विकल होती हैं।
कलहंस छंद विधान –
यह 18 मात्राओं का मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
द्विकल+चौपाई (16 मात्रा)= 18मात्राएँ।
मदिरा सवैया विधान –
यह 22 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में गुरु प्रति चरण में रहता है। इसकी संरचना 211× 7 + 2 है।
दीप छंद विधान –
“चौकल नगण व्याप्त,
गुरु-लघु कर समाप्त,
रच लो मधुर ‘दीप’,
लगती चपल सीप।”
चौकल, नगण(111) गुरु लघु (S1) = 10 मात्रायें।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।