हंसगति छंद “भारत”
हंसगति छंद विधान –
हंसगति छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद है जिसमें ग्यारहवीं और नवीं मात्रा पर विराम होता है। प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली तथा 9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + 4 है।
हंसगति छंद विधान –
हंसगति छंद बीस मात्रा प्रति पद का मात्रिक छंद है जिसमें ग्यारहवीं और नवीं मात्रा पर विराम होता है। प्रथम चरण की मात्रा बाँट ठीक दोहे के सम चरण वाली तथा 9 मात्रिक द्वितीय चरण की मात्रा बाँट 3 + 2 + 4 है।
शास्त्र छंद विधान –
शास्त्र छंद 1222 1222 1221 मापनी पर आधारित 20 मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है।
बिहारी छंद विधान –
यह (221 1221 12, 21 122) मापनी पर आधारित 22 मात्रा का मात्रिक छंद है।
शैलसुता छंद विधान –
शैलसुता छंद चार चरण का वर्णिक छंद होता है जिसमें दो- दो चरण समतुकांत होते हैं।
4 लघु + 6भगण (211)
+1 गुरु = 23 वर्ण
1111 + 211*6 + 2
कुकुभ छंद विधान –
कुकुभ छंद सम-मात्रिक छंद है। इस चार पदों के छंद में प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद 16 और 14 मात्रा के दो चरणों में बंटा हुआ रहता है। 14 मात्रिक चरण की अंतिम 4 मात्रा सदैव 2 गुरु (SS) होती हैं तथा बची हुई 10 मात्राएँ अठकल + द्विकल होती हैं।
कलहंस छंद विधान –
यह 18 मात्राओं का मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
द्विकल+चौपाई (16 मात्रा)= 18मात्राएँ।
मदिरा सवैया विधान –
यह 22 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में गुरु प्रति चरण में रहता है। इसकी संरचना 211× 7 + 2 है।
दीप छंद विधान –
“चौकल नगण व्याप्त,
गुरु-लघु कर समाप्त,
रच लो मधुर ‘दीप’,
लगती चपल सीप।”
चौकल, नगण(111) गुरु लघु (S1) = 10 मात्रायें।
प्रदोष छंद विधान –
यह 13 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल+त्रिकल+द्विकल =13 मात्रायें
पुनीत छंद विधान –
यह 15 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
चौक्कल+छक्कल +SS1(गुरु गुरु लघु) = 15 मात्रायें।
कज्जल छंद विधान-
यह 14 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है। दो दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल+त्रिकल+गुरु और लघु=14 मात्राएँ।
त्रिलोकी छंद विधान-
यह प्रति पद 21 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 11,10 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + गुरु और लघु, त्रिकल + द्विकल + द्विकल + लघु और गुरु = 11, 10 = 21 मात्राएँ।
दोही छंद विधान-
दोहे के पद के प्रारंभ में द्विकल जोड़ देने से दोही छंद बन जाता है, बाकी सब कुछ दोहे वाला ही विधान रहता है।
प्रदीप छंद विधान-
यह प्रति पद 29 मात्राओं का सम मात्रिक छंद है जो 16,13 मात्राओं के दो यति खण्डों में विभाजित रहता है।
दो दो पद या चारों पद समतुकांत होते हैं।
सिंह विलोकित छन्द विधान
मात्रा सोलह ही रखें,चरण चार तुकबंद।
दुक्कल अठकल अरु त्रिकल,लघु-गुरु रखलो अंत।।
सम मात्रिक यह छन्द है,बस इतना लो जान।
सिंह विलोकित छन्द का,रट लो आप विधान।।
जयदयालजी गोयन्दका
देवपुरुष जीवन गाथा से,प्रेरित जग को करना है,
संतों की अमृत वाणी को,अंतर्मन में भरना है।
है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर,कार्य करूँ जन हितकारी,
शत-शत नमन आपको मेरा,राह दिखायी सुखकारी।१।
मधुर ध्वनि छन्द / अमृत ध्वनि छंद ‘विधान’-
यह 24 मात्राओं का मात्रिक छन्द है।
क्रमशः 8,8,8 पर यति आवश्यक है।
चार पदों के इस छन्द में दो या चारों पद समतुकांत होने चाहिए। अन्तर्यति तुकांतता से छंद का माधुर्य बढ़ जाता है,वैसे यह आवश्यक नहीं है।
मधुर ध्वनि छंद के चार पदों के प्रारंभ में एक दोहा जोड़ देने से कुण्डलिया छंद की तर्ज का एक नया छंद बन जाता है जो “अमृत ध्वनि” के नाम से प्रसिद्ध है।
विष्णुपद छन्द विधान-
विष्णुपद छन्द सम मात्रिक छन्द है। यह 26 मात्राओं का छन्द है जिसमें 16,10 मात्राओं पर यति आवश्यक है।अंत में वाचिक भार 2 यानि गुरु का होना अनिवार्य है।कुल चार चरण होते हैं क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।
मनहरण घनाक्षरी, ‘कविकुल’ कविकुल निखरा है, काव्य-रस बिखरा है, रसपान करने को, कविगण आइये। प्रेम का ये अनुबंध, अतिप्रिय है सम्बंध, भावों से पिरोये छन्द,
चौपई छन्द विधान –
चौपई एक मात्रिक छन्द है। इस छन्द में चार चरण होते हैं। चौपई छन्द से मिलते-जुलते नाम वाले अत्यंत ही प्रसिद्ध सममात्रिक छन्द चौपाई से भ्रम में नहीं पड़ना चाहिये। चौपई के प्रत्येक चरण में 15 मात्राओं के साथ ही प्रत्येक चरण में समापन एक गुरु एवं एक लघु के संयोग से होता है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।