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इस वेब साइट को “कविकुल” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के कवियों को  एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ वे अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर सकें उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके।

यह “कविकुल” वेब साइट उन सभी हिन्दी भाषा के कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नयी वेब साइट “कविकुल” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।

“यहाँ काव्य की रोज बरसात होगी।
कहीं भी न ऐसी करामात होगी।
नहाओ सभी दोस्तो खुल के इसमें।
बड़ी इससे क्या और सौगात होगी।।”

मत्तगयंद सवैया “हरि गुण”

मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।

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भव छंद “जागो भारत”

भव छंद विधान –

भव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है । चरणांत के आधार पर इन 11 मात्राओं के दो विन्यास हैं। प्रथम 8 1 2(S) और दूसरा 6 1 22(SS)।

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भानु छंद ‘श्याम प्रार्थना’

भानु छंद ‘श्याम प्रार्थना” मुरलीधर, तू ही जग का पालनहार। ब्रजवासी, तुझमें बसता यह संसार।। यदुकुल में, लिया कृष्ण बनकर अवतार। अविनाशी, इस जग का

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भृंग छंद “विरह विकल कामिनी”

भृंग छंद विधान –

“ननुननुननु गल” पर यति, दश द्वय अरु अष्ट।
रचत मधुर यह रसमय, सब कवि जन ‘भृंग’।।

“ननुननुननु गल” = नगण की 6 आवृत्ति फिर गुरु लघु। 20 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 12, 8 वर्ण पर।

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संत छंद ‘संकल्प’

संत छंद ‘संकल्प’ हुई भोर नयी, आओ स्वागत करलें। चलो साथ बढ़ें, नव ऊर्जा हिय भरलें।। खिली धूप धवल, कहाँ तिमिर अब गहरा। रुचिर पुष्प

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पद्धरि छंद “जीवन मंत्र”

पद्धरि छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- द्विकल + अठकल + द्विकल + 1S1 (जगण) है।

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उपमान छंद  ‘शिवा’

उपमान छंद   ‘शिवा’ हे सोमेश्वर हे शिवा, भोले भंडारी। शीश चन्द्रमा सोहता, जटा गंगधारी।। अंग भुजंग विराजते, गल मुंडन माला। कर त्रिशूल डमरू धरे,

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भूमिसुता छंद “जीव हिंसा”

भूमिसुता छंद विधान –

“मामामासा” तोड़ो आठा, चार सजा।
सारे भाई चाखो छंदा, ‘भूमिसुता’।।

“मामामासा” = मगण मगण मगण सगण
222 222 22//2 112 = 12वर्ण का वर्णिक छंद।

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चांद्रायण छंद ‘सुमिरन’

चांद्रायण छंद  ‘सुमिरन’ हरि के नाम अनेक, जपा नित कीजिये। आठों याम सचेत, सुधा रस पीजिये।। महिमा बड़ी विराट, नित स्मरण में रखें। मन से

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