मंगलवत्थु छंद ‘अयोध्या वापसी’
मंगलवत्थु छंद ‘अयोध्या वापसी’ घर आये श्री राम, आज खुशियाँ बरसी। घन, अम्बर, पाताल, सकल धरती सरसी।। सजे हुये घर द्वार, सजे सब नर-नारी। झिलमिल जलते दीप, सजी नगरी सारी।। शंखनाद चहुँ ओर, ढोल, डमरू गाजे। जयकारे की गूँज, गीत मंगल बाजे।। राम, लखन, सिय साथ, घड़ी अभिनंदन की। उमड़ी खुशियाँ आज, गई रुत क्रंदन […]
बिंदु छंद “राम कृपा”
बिंदु छंद विधान –
“भाभमगा” यति, छै ओ’ चारी।
‘बिंदु’ रचें सब, छंदा प्यारी।।
“भाभमगा” = भगण भगण मगण गुरु
(211 211, 222 2) = 10 वर्ण प्रति पद का वर्णिक छंद।
सोरठा छंद ‘राम महिमा’
सोरठा छंद और दोहा छंद के विधान में कोई अंतर नहीं है केवल चरण पलट जाते हैं। दोहा के सम चरण सोरठा में विषम बन जाते हैं और दोहा के विषम चरण सोरठा के सम। तुकांतता भी वही रहती है। यानी सोरठा में विषम चरण में तुकांतता निभाई जाती है जबकि पंक्ति के अंत के सम चरण अतुकांत रहते हैं।
पादाकुलक छंद ‘राम महिमा’
पादाकुलक छंद 16 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। इन 16 मात्राओं की मात्रा बाँट:- चार चौकल हैं।
पादाकुलक छंद के विभिन्न भेदों में मत्त समक छंद, विश्लोक छंद, चित्रा छंद, वानवासिका छंद इत्यादि सम्मिलित हैं।
शालिनी छंद “राम स्तवन”
शालिनी छंद विधान –
राचें बैठा, सूत्र “मातातगागा”।
गावें प्यारी, ‘शालिनी’ छंद रागा।।
“मातातगागा”= मगण, तगण, तगण, गुरु, गुरु
(222 221 221 22)
रूपमाला छंद “राम महिमा”
रूपमाला छंद / मदन छंद विधान –
रूपमाला छंद जो कि मदन छंद के नाम से भी जाना जाता है, 24 मात्रा प्रति पद का सम-पद मात्रिक छंद है। इसके प्रत्येक पद में 14 और 10 के विश्राम से 24 मात्राएँ और पदान्त गुरु-लघु से होता है।
दीप छंद “राम-भजन”
दीप छंद विधान –
“चौकल नगण व्याप्त,
गुरु-लघु कर समाप्त,
रच लो मधुर ‘दीप’,
लगती चपल सीप।”
चौकल, नगण(111) गुरु लघु (S1) = 10 मात्रायें।
पुण्डरीक छंद “राम-वंदन”
पुण्डरीक छंद विधान –
“माभाराया” गण से मिले दुलारी।
ये प्यारी छंदस ‘पुण्डरीक’ न्यारी।।
“माभाराया” = मगण भगण रगण यगण।
विमलजला छंद
विमलजला छंद विधान:-
“सनलाग” वरण ला।
रचलें ‘विमलजला’।।
“सनलाग” = सगण नगण लघु गुरु