रत्नकरा छंद “अतृप्त प्रीत”
रत्नकरा छंद विधान –
“मासासा” नव अक्षर लें।
प्यारी ‘रत्नकरा’ रस लें।।
“मासासा” = मगण सगण सगण।
( 222 112 112 ) = 9 वर्ण का वर्णिक छंद।
रतिलेखा छंद “विरह विदग्धा”
रतिलेखा छंद विधान –
“सननानसग” षट दशम, वरण छंदा।
यति एक दश अरु पँचम, सु’रतिलेखा’।।
“सननानसग”= सगण नगण नगण नगण सगण गुरु।
( 112 111 111 11,1 112 2 ) = 16 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 11 और 5 वर्णों पर।
भृंग छंद “विरह विकल कामिनी”
भृंग छंद विधान –
“ननुननुननु गल” पर यति, दश द्वय अरु अष्ट।
रचत मधुर यह रसमय, सब कवि जन ‘भृंग’।।
“ननुननुननु गल” = नगण की 6 आवृत्ति फिर गुरु लघु। 20 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 12, 8 वर्ण पर।
प्रहरणकलिका छंद “विकल मन”
प्रहरणकलिका छंद विधान –
“ननभन लग” छंद रचत शुभदा।
‘प्रहरणकलिका’ रसमय वरदा।।
“ननभन लग” = नगण नगण भगण नगण लघु गुरु।
सारवती छंद “विरह वेदना”
सारवती छंद विधान –
“भाभभगा” जब वर्ण सजे।
‘सारवती’ तब छंद लजे।।
“भाभभगा” = भगण भगण भगण + गुरु
नील छंद “विरहणी”
नील छंद / अश्वगति छंद विधान –
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा” तब दें।
‘नील’ सुछंदजु षोडस आखर की रच लें।।
“भा” गण पांच रखें इक साथ व “गा”= 5 भगण+गुरु
तोटक छंद “विरह”
तोटक छंद विधान –
जब द्वादश वर्ण “ससासस” हो।
तब ‘तोटक’ पावन छंदस हो।।
“ससासस” = चार सगण
112 112 112 112 = 12 वर्ण
उड़ियाना छंद “विरह”
उड़ियाना छंद विधान –
उड़ियाना छंद 22 मात्रा का सम मात्रिक छंद है। यह प्रति पद 22 मात्रा का छंद है। इस में 12,10 मात्रा पर यति विभाजन है। यति से पहले त्रिकल आवश्यक।