रति छंद “प्यासा मन-भ्रमर”
रति छंद विधान –
‘रति’ छंदा’, रख गण “सभनसागे”।
यति चारा, अरु नव वरण साजे।।
“सभनसागे” = सगण भगण नगण सगण गुरु
( 112 2,11 111 112 2) = 13 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 4-9 वर्णों पर।
विजया घनाक्षरी “कामिनी”
विजया घनाक्षरी विधान:-
(8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
प्रत्येक यति के अंत में हमेशा लघु गुरु (1 2) अथवा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक।
आंतरिक तुकान्तता के दो रूप प्रचलित हैं। प्रथम हर चरण की तीनों आंतरिक यति समतुकांत। दूसरा समस्त 16 की 16 यति समतुकांत।
चंडिका छंद “आँखें”
चंडिका छंद जो कि धरणी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 13 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत रगण (S1S) से होना आवश्यक है। इसमें प्रथम 8 मात्रा पर यति अनिवार्य है।
कुसुमसमुदिता छंद “शृंगार वर्णन”
कुसुमसमुदिता छंद विधान –
“भाननगु” गणन रचिता।
छंदस ‘कुसुमसमुदिता’।।
“भाननगु” = भगण नगण नगण गुरु
(211 111 111 2)