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गोपाल छंद “वीर सावरकर”

गोपाल छंद जो भुजंगिनी छंद के नाम से भी जाना जाता है, 15 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। 15 मात्राओं की मात्रा बाँट:- अठकल + त्रिकल + 1S1 (जगण) है।

सरसी छंद “राजनाथजी”

सरसी छंद जो कि कबीर छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 27 मात्रा होती है। यति 16 और 11 मात्रा पर है अर्थात प्रथम चरण 16 मात्रा का तथा द्वितीय चरण 11 मात्रा का होता है। यह छंद सुमंदर छंद के नाम से भी जाना जाता है।

सार छंद “महर्षि वाल्मीकि”

सार छंद जो कि ललितपद छंद के नाम से भी जाना जाता है, चार पदों का अत्यंत गेय सम-पद मात्रिक छंद है। इस में प्रति पद 28 मात्रा होती है। यति 16 और 12 मात्रा पर है।

“दस्यु राज रत्नाकर जग में, वाल्मीकि कहलाए।
उल्टा नाम राम का इनको, नारद जी जपवाए।।”

आल्हा छंद “अग्रवाल”

आल्हा छंद “अग्रदूत अग्रवाल”

अग्रोहा की नींव रखे थे, अग्रसेन नृपराज महान।
धन वैभव से पूर्ण नगर ये, माता लक्ष्मी का वरदान।।

कुकुभ छंद “शरत्चंद्र चट्टोपाध्याय”

कुकुभ छंद विधान –

कुकुभ छंद सम-मात्रिक छंद है। इस चार पदों के छंद में प्रति पद 30 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक पद 16 और 14 मात्रा के दो चरणों में बंटा हुआ रहता है। 14 मात्रिक चरण की अंतिम 4 मात्रा सदैव 2 गुरु (SS) होती हैं तथा बची हुई 10 मात्राएँ अठकल + द्विकल होती हैं।

कलहंस छंद “तुलसी चरित”

कलहंस छंद विधान –

यह 18 मात्राओं का मात्रिक छंद है। दो-दो चरण या चारों चरण समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

द्विकल+चौपाई (16 मात्रा)= 18मात्राएँ।

जयदयालजी गोयन्दका

जयदयालजी गोयन्दका

देवपुरुष जीवन गाथा से,प्रेरित जग को करना है,
संतों की अमृत वाणी को,अंतर्मन में भरना है।
है सौभाग्य मेरा कुछ लिखकर,कार्य करूँ जन हितकारी,
शत-शत नमन आपको मेरा,राह दिखायी सुखकारी।१।