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चौपाई छंद विधान (मात्रिक छंद परिभाषा)

चौपाई छंद 16 मात्रा का बहुत ही व्यापक छंद है। यह चार चरणों का सम मात्रिक छंद है। चौपाई के दो चरण अर्द्धाली या पद कहलाते हैं। जैसे-

“जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।।”

ऐसी चालीस अर्द्धाली की रचना चालीसा के नाम से प्रसिद्ध है। इसके एक चरण में आठ से सोलह वर्ण तक हो सकते हैं, पर मात्राएँ 16 से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। दो दो चरण समतुकांत होते हैं। चरणान्त गुरु या दो लघु से होना आवश्यक है।

चौपाई छंद चौकल और अठकल के मेल से बनती है। चार चौकल, दो अठकल या एक अठकल और दो चौकल किसी भी क्रम में हो सकते हैं। समस्त संभावनाएँ निम्न हैं।
4-4-4-4, 8-8, 4-4-8, 4-8-4, 8-4-4

चौपाई में कल निर्वहन केवल चतुष्कल और अठकल से होता है। अतः एकल या त्रिकल का प्रयोग करें तो उसके तुरन्त बाद विषम कल शब्द रख समकल बना लें। जैसे 3+3 या 3+1 इत्यादि। चौकल और अठकल के नियम निम्न प्रकार हैं जिनका पालन अत्यंत आवश्यक है।

चौकल = 4 – चौकल में चारों रूप (11 11, 11 2, 2 11, 22) मान्य रहते हैं।

(1) चौकल में पूरित जगण (121) शब्द, जैसे विचार महान उपाय आदि नहीं आ सकते।
(2) चौकल की प्रथम मात्रा पर कभी भी शब्द समाप्त नहीं हो सकता।
चौकल में 3+1 मान्य है परन्तु 1+3 मान्य नहीं है। जैसे ‘व्यर्थ न’ ‘डरो न’ आदि मान्य हैं। ‘डरो न’ पर ध्यान चाहूँगा, 121 होते हुए भी मान्य है क्योंकि यह पूरित जगण नहीं है। डरो और न दो अलग अलग शब्द हैं। वहीं चौकल में ‘न डरो’ मान्य नहीं है क्योंकि न शब्द चौकल की प्रथम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।

3+1 रूप खंडित-चौकल कहलाता है जो चरण के आदि या मध्य में तो मान्य है पर अंत में मान्य नहीं है। ‘डरे न कोई’ से चरण का अंत हो सकता है ‘कोई डरे न’ से नहीं।

अठकल = 8 – अठकल के दो रूप हैं। प्रथम 4+4 अर्थात दो चौकल। दूसरा 3+3+2 है जिसमें त्रिकल के तीनों (111, 12 और 21) तथा द्विकल के दोनों रूप (11 और 2) मान्य हैं।

(1) अठकल की 1 से 4 मात्रा पर और 5 से 8 मात्रा पर पूरित जगण – ‘उपाय’ ‘सदैव ‘प्रकार’ जैसा शब्द नहीं आ सकता।
(2) अठकल की प्रथम और पंचम मात्रा पर शब्द कभी भी समाप्त नहीं हो सकता। ‘राम नाम जप’ सही है जबकि ‘जप राम नाम’ गलत है क्योंकि राम शब्द पंचम मात्रा पर समाप्त हो रहा है।

पूरित जगण अठकल की तीसरी या चौथी मात्रा से ही प्रारंभ हो सकता है क्योंकि 1 और 5 से वर्जित है तथा दूसरी मात्रा से प्रारंभ होने का प्रश्न ही नहीं है, कारण कि प्रथम मात्रा पर शब्द समाप्त नहीं हो सकता। ‘तुम सदैव बढ़’ में जगण तीसरी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘तुम स’ और ‘दैव’ ये दो त्रिकल तथा ‘बढ़’ द्विकल बना रहा है।
‘राम सहाय न’ में जगण चौथी मात्रा से प्रारंभ हो कर ‘राम स’ और ‘हाय न’ के रूप में दो खंडित चौकल बना रहा है।

एक उदाहरणार्थ रची अर्द्धाली में ये नियम देखें-
“तुम गरीब से रखे न नाता।
बने उदार न हुये न दाता।।”

“तुम गरीब से” अठकल तथा तीसरी मात्रा से जगण प्रारंभ।
“रखे न” खंडित चौकल “नाता” चौकल। “नाता रखे न” लिखना गलत है क्योंकि खंडित चौकल चरण के अंत में नहीं आ सकता।
“बने उदार न” अठकल तथा चौथी मात्रा से जगण प्रारंभ।

किसी भी गंभीर सृजक का चौपाई छंद पर अधिकार होना अत्यंत आवश्यक है। आल्हा, ताटंक, लावणी, सार, सरसी इत्यादि प्रमुख छंदों का आधार चौपाई ही है क्योंकि इन छंदों के पद का प्रथम 16 मात्रिक चरण चौपाई का ही चरण है।

चौपाई छंद के विधान पर स्वरचित चौपाई:-

“बारह मात्रा दो गुरु वाचिक।
रचें छंद चौपाई मात्रिक।।
बारह मात्रा में त्रय चौकल।
गिनें सटे दो चौकल अठकल।।”

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

6 Responses

  1. चौपाई छन्द का विधान बहुत ही सलीके से सम्पूर्ण विवरण सहित लिखा है आपने जो कि प्रत्येक रचनाकार के लिए बहुत ही फायदेमंद है।
    कविकुल छंदों के विधान की बहुत ही उत्तम जानकारी देता है।

    1. शुचिता बहन तुम्हारी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद। कविकुल वेब साइट का उद्देश्य ही छंदों के विषय में पूर्ण जानकारी उपलब्ध कराना तथा साथ ही छंदों की उच्च स्तरीय रचनाएँ प्रकाशित करना है।

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