इस वेब साइट को “कविकुल” जैसा सार्थक नाम दे कर निर्मित करने का प्रमुख उद्देश्य हिन्दी भाषा के कवियों को एक सशक्त मंच उपलब्ध कराना है जहाँ वे अपनी रचनाओं को प्रकाशित कर सकें उन रचनाओं की उचित समीक्षा हो सके, साथ में सही मार्ग दर्शन हो सके और प्रोत्साहन मिल सके।
यह “कविकुल” वेब साइट उन सभी हिन्दी भाषा के कवियों को समर्पित है जो हिन्दी को उच्चतम शिखर पर पहुँचाने के लिये जी जान से लगे हुये हैं जिसकी वह पूर्ण अधिकारिणी है। आप सभी का इस नयी वेब साइट “कविकुल” में हृदय की गहराइयों से स्वागत है।
“यहाँ काव्य की रोज बरसात होगी।
कहीं भी न ऐसी करामात होगी।
नहाओ सभी दोस्तो खुल के इसमें।
बड़ी इससे क्या और सौगात होगी।।”
दीप छंद, ‘सर्दी’
दीप छंद, “सर्दी” चाहूँ गरम चाय, मौसम गजब ढाय। बरसे बहुत मेह, काँपे सकल देह।। सर्दी बहुत आज, करने सकल काज। कितनी कड़क भोर, दिन
रुचि छंद “कालिका स्तवन”
रुचि छंद विधान –
“ताभासजा, व ग” यति चार और नौ।
ओजस्विनी, यह ‘रुचि’ छंद राच लौ।।
“ताभासजा, व ग” = तगण भगण सगण जगण गुरु।
रोला छंद “बाल-हृदय”
रोला छंद
बाल हृदय की थाह, बड़ी मुश्किल है पाना।
किस धुन में निर्लिप्त, किसी ने कभी न जाना।।
आसपास को देख, कभी हर्षित ये होता।
फिर तटस्थ हो बैठ, किसी धुन में झट खोता।।
रसाल छंद “यौवन”
रसाल छंद विधान –
“भानजभजुजल” वर्ण, और यति नौ दश पे रख।
पावन मधुर ‘रसाल’, छंद-रस रे नर तू चख।।
“भानजभजुजल” = भगण नगण जगण भगण जगण जगण लघु।
मरहठा छंद “कृष्ण लीलामृत”
मरहठा छंद प्रति पद कुल 29 मात्रा का सम-पद मात्रिक छंद है। इसमें यति विभाजन 10, 8,11 मात्रा का है।
मात्रा बाँट:-
प्रथम यति 2+8 =10 मात्रा
द्वितीय यति 8,
तृतीय यति 8+3 (ताल यानि 21) = 11 मात्रा
रसना छंद “पथिक आह्वाहन”
रसना छंद विधान –
“नयसननालाग”, रखें सत अरु दश यतिं।
मधु ‘रसना’ छंद, रचें ललित मृदुल गतिं।
“नयसननालाग” = नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु।
बरवै छंद “शिव स्तुति”
बरवै छंद अर्द्ध-सम मात्रिक छंद है। इसके प्रथम एवं तृतीय चरण में 12-12 मात्राएँ तथा द्वितीय एवं चतुर्थ चरण में 7-7 मात्राएँ हाती हैं।
रमेश छंद “नन्ही गौरैया”
रमेश छंद विधान –
“नयनज” का दे गण परिवेश।
रचहु सुछंदा मृदुल ‘रमेश’।।
“नयनज” = [ नगण यगण नगण जगण]
( 111 122 111 121 ) = 12 वर्ण का वर्णिक छंद।
सुजान छंद “पर्यावरण”
सुजान छंद २३ मात्राओं का द्वि पदी मात्रिक छंद है. इस छंद में हर पद में १४ तथा ९ मात्राओं पर यति तथा गुरु लघु पदांत का विधान है।