भुजंगप्रयात छंद
“नोट बन्दी”
हुई नोट बन्दी ठगा सा जमाना।
किसी को रुलाना किसी को हँसाना।।
कहीं आँसुओं की झड़ी सी लगी है।
कहीं पे खुशी की दिवाली जगी है।।
इकट्ठा जिन्होंने किया वित्त काला।
उन्हीं का पिटा आज देखो दिवाला।।
बसी थी जहाँ अल्प ईमानदारी।
खरे लोग देखो सभी हैं सुखारी।।
कहीं नोट की लोग होली जलाते।
कहीं बन्द बोरे नदी में बहाते।।
किसी के जगे भाग खाते खुला के।
कराए जमा नोट काले धुला के।।
सभी बैंक में आ गई भीड़ सारी।
लगी हैं कतारें मचा शोर भारी।।
कमी नोट की सामने आ रही है।
नहीं जानते क्या हुआ ये सही है।।
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भुजंगप्रयात छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
4 यगण (122) यानी कुल 12 वर्ण प्रत्येक चरण की वर्णिक छंद। चार चरण दो दो समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
भुजंगपर्यात छंद में नोटबन्दी का बहुत ही सजीव चित्र उकेरा है। 2016 की वह रात जब अचानक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीजी ने टी वी पर घोषणा की थी।
सच, आपकी रचना पढ़कर सारा दृश्य आँखों के सामने आ गया।
बढ़िया रचना,विषय भी हटके लिया है आपने।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद। यह कविता मैंने दिसम्बर 2016 में लिखी थी।
आपकी इस कविता ने 2016 के नवंबर में अचानक घोषित नोटबन्दी की याद ताजा कर दी। जीवंत वर्णन।
आपकी आत्मिक टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।