रथपद छंद “मधुर स्मृति”
रथपद छंद विधान –
“ननुसगग” वरण की छंदा।
‘रथपद’ रचत सभी बंदा।।
“ननुसगग” = नगण नगण सगण गुरु गुरु।
रथपद छंद विधान –
“ननुसगग” वरण की छंदा।
‘रथपद’ रचत सभी बंदा।।
“ननुसगग” = नगण नगण सगण गुरु गुरु।
पीयूष वर्ष छंद मात्रिक छंद है। प्रत्येक पद 10, 9 मात्रा के दो चरणों में विभक्त रहता है। पद की मात्रा बाँट 2122 21, 22 21S होती है।
रत्नकरा छंद विधान –
“मासासा” नव अक्षर लें।
प्यारी ‘रत्नकरा’ रस लें।।
“मासासा” = मगण सगण सगण।
( 222 112 112 ) = 9 वर्ण का वर्णिक छंद।
जनक छंद कुल तीन चरणों का छंद है जिसके प्रत्येक चरण में 13 मात्राएं होती हैं। ये 13 मात्राएँ ठीक दोहे के विषम चरण वाली होती हैं। विधान और मात्रा बाँट भी ठीक दोहे के विषम चरण की है। यह छंद व्यंग, कटाक्ष और वक्रोक्तिमय कथ्य के लिए काफी उपयुक्त है।
रतिलेखा छंद विधान –
“सननानसग” षट दशम, वरण छंदा।
यति एक दश अरु पँचम, सु’रतिलेखा’।।
“सननानसग”= सगण नगण नगण नगण सगण गुरु।
( 112 111 111 11,1 112 2 ) = 16 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 11 और 5 वर्णों पर।
छप्पय छंद एक विषम-पद मात्रिक छंद है। यह भी कुण्डलिया छंद की तरह छह पदों का एक मिश्रित छंद है जो दो छंदों के संयोग से बनता है। इसके प्रथम चार पद रोला छंद के हैं, जिसके प्रत्येक पद में 24-24 मात्राएँ होती हैं तथा यति 11-13 पर होती है। आखिर के दो पद उल्लाला छंद के होते हैं।
गीतिका छंद चार पदों का एक सम-मात्रिक छंद है। प्रति पद 26 मात्राएँ होती है तथा प्रत्येक पद 14-12 अथवा 12-14 मात्राओं की यति के अनुसार होता है। निम्न वर्ण विन्यास पर गीतिका छंद सर्वाधिक मधुर होता है, जो रचनाकारों में एक प्रकार से रूढ है।
2122 2122 2122 212
रति छंद विधान –
‘रति’ छंदा’, रख गण “सभनसागे”।
यति चारा, अरु नव वरण साजे।।
“सभनसागे” = सगण भगण नगण सगण गुरु
( 112 2,11 111 112 2) = 13 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 4-9 वर्णों पर।
सरस छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत नगण (111) से होना आवश्यक है। इसमें 7 – 7 मात्राओं पर यति अनिवार्य है।
मलयज छंद विधान –
“ननलल” लघु सब।
‘मलयज’ रच तब।।
“ननलल” = नगण नगण लघु लघु।
शिव छंद 11 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह 2121212 मापनी आधारित मात्रिक छंद है।
विजया घनाक्षरी विधान:-
(8, 8, 8, 8 पर यति अनिवार्य।
प्रत्येक यति के अंत में हमेशा लघु गुरु (1 2) अथवा 3 लघु (1 1 1) आवश्यक।
आंतरिक तुकान्तता के दो रूप प्रचलित हैं। प्रथम हर चरण की तीनों आंतरिक यति समतुकांत। दूसरा समस्त 16 की 16 यति समतुकांत।
विजात छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह एक मापनी आधारित छंद है। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:- 1222 1222 है।
मनोज्ञा छंद विधान –
“नरगु” वर्ण सप्ता।
रचत है ‘मनोज्ञा’।।
“नरगु” = नगण रगण गुरु
111 212 + गुरु = 7 वर्ण का वर्णिक छंद।
म्हारो भारत घणो है चोखो,
सगळै जग सै यो है अनोखो।
ई री शोभा ताराँ सै झिलमिल,
जस गावाँ आपाँ सब हिलमिल।
मनोरम छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है। यह मानव जाति का छंद है। इन 14 मात्राओं की मात्रा बाँट:-
S122 21SS या S122 21S11 है।
शृंगार छंद बहुत ही मधुर लय का 16 मात्रा का चार चरण का छंद है। तुक दो दो चरण में है। इसकी मात्रा बाँट 3 – 2 – 8 – 3 (ताल) है।
मनविश्राम छंद विधान –
“भाभभुभाभनुया” यति दें, दश रुद्र वरण अभिरामा।
छंद रचें कवि वृन्द सभी, मनभावन ‘मनविशरामा’।।
“भाभभुभाभनुया” = भगण की 5 आवृत्ति फिर नगण यगण।
211 211 211 2,11 211 111 122 = कुल 21 वर्ण का वर्णिक छंद, यति 10 और 11 वर्ण।
मनमोहन छंद 14 मात्रा प्रति पद का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत नगण (111) से होना आवश्यक है। इसमें 8 और 6 मात्राओं पर यति अनिवार्य है।
मधुमती छंद विधान –
“ननग” गणन की।
मधुर ‘मधुमती’।।
“ननग” = (नगण नगण गुरु)
111 111 2 = 7 वर्ण का वर्णिक छंद।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।