मदिरा सवैया
‘विदाई सीख’
(1)
दामन में खुशियाँ भर के,
पिय आँगन जाय रही बिटिया।
नीर भरी अँखियाँ फिर भी,
मन में हरषाय रही बिटिया।
मंगल चावल दो कुल में,
हँस के बरसाय रही बिटिया।
छोड़ चली घर बाबुल का,
पिय द्वार सजाय रही बिटिया।
(2)
मात-पिता सम हैं समधी,
ससुराल लगे घर ही अपना।
काज सभी सुखदायक हों,
महको गुल सी सच हो सपना।
भाव भरा मन स्वच्छ रहे,
प्रभु नाम सदा मन में जपना।
ज्योत सदा हिय प्रेम जले,
शुचि स्नेह भरे तप को तपना।
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मदिरा सवैया विधान – (सवैया छंद विधान)
यह 22 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में गुरु प्रति चरण में रहता है। इसकी संरचना 211× 7 + 2 है।
(211 211 211 211 211 211 211 2 )
सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए इसके चरण में 10 -12 या 12 – 10 वर्ण के 2 यति खंड रख सकता है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया,असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
बहुत अच्छा लिखते हो आप।
लाजवाब रचना
आभार
“मात-पिता सम हैं समधी,
ससुराल लगे घर ही अपना।”
वाह!!!! घर से विदा होती बेटी को माँ की बहुत ही उत्तम सीख सवैयों जैसी कठिन छंद में आपने दी है
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार।
उत्साहवर्धन और वो भी काव्यात्मक सवैया शैली में।
अतिशय आभार आपका।
सीख विदा बिटिया घर से जब हो ‘मदिरा’ यह देवत है।
खोल रखी शुचिता इस में मन को रचना सुख लेवत है।।
विधान सहित बहुत प्यारे सवैये।