मात्रिक छंद परिभाषा :- (छंद परिभाषा)
मात्रिक छंद के पद में वर्णों की संख्या और वर्णों का क्रम निर्धारित नहीं रहता है परंतु मात्रा की संख्या निर्धारित रहती है। हिन्दी में वर्णिक छंदों की अपेक्षा मात्रिक छंदों का प्रचलन अधिक है। मात्रिक छंदों की लय भी बहुत मधुर तथा लोचदार होती है। यह लय केवल मात्राओं के बंधन से नहीं आती बल्कि उन मात्राओं को भी एक निश्चित क्रम में सजाने से प्राप्त होती है। मात्राओं के इस निश्चित क्रम का आधार है कल संयोजन। अधिकांश छंद समकल अर्थात द्विकल, चतुष्कल, षटकल, अठकल आदि पर आधारित रहते हैं परन्तु कई छंद में केवल विषम कल भी रहते हैं या समकलों के मध्य विषम कलों का भी समावेश रहता है। कलों के अतिरिक्त कई मात्रिक छंद वर्ण-गुच्छक पर भी आधारित रहते हैं या कई छंदों के पदांत में वर्ण-गुच्छक रह सकता है। वर्ण गुच्छक में लघु गुरु का क्रम सुनिश्चित रहता है परंतु मात्रिक छंदों में गुरु को दो लघु में तोड़ा जा सकता है जबकि यह छूट वर्णिक छंदों में नहीं है। मेरी एक चौपाई का उदाहरण देखें जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्रा आवश्यक है।
“भोले की महिमा है न्यारी।
औघड़ दानी भव-भय हारी।।
शंकर काशी के तुम नाथा।
रखो शीश पर हे प्रभु हाथा।।”
उदाहरण छंद के चरणों में वर्ण संख्या क्रमशः 9, 11, 10, 11 है। पर मात्रा हर चरण में 16 एक समान है और लय सधी हुई है।
प्रति पद मात्रा संख्या के आधार पर मात्रिक छंदों की दो श्रेणियाँ हैं-
1. सामान्य मात्रिक छंद- 32 मात्रा प्रति पद तक के छंद इस श्रेणी में आते हैं।
2. दण्डक मात्रिक छंद – प्रति पद 32 मात्रा से अधिक के छंद इस श्रेणी में आते हैं। जैसे – झूलना (37 मात्रा), हरिप्रिया (46 मात्रा) आदि।
स्वरूप के आधार पर मात्रिक छंद 3 प्रकार के होते हैं-
सम मात्रिक छंद:- जिस छंद के सभी पदों में मात्राओं की संख्या समान होती है उन्हें सम मात्रिक छंद कहते हैं। जैसे-चौपाई, रोला, हरिगीतिका, वीर, अहीर, तोमर, मानव, पीयूषवर्ष, सुमेरु, राधिका, दिक्पाल, रूपमाला, सरसी, सार, गीतिका और ताटंक आदि।
अर्धसम मात्रिक छंद:- जिस छंद का पहला और तीसरा चरण तथा दुसरा और चौथा चरण आपस में एक समान हो, वह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है, परंतु पहला और दूसरा चरण एक दूसरे से लक्षण में अलग रहते हैं। जैसे दोहा छंद के दल के दोनों चरण क्रमशः 13 और 11 मात्रा के होते हैं। इस श्रेणी के अन्य छंद सोरठा, बरवै, उल्लाला आदि हैं। साधारणतया ये छंद दो दल (पंक्ति) में लिखे जाते हैं।
विषम मात्रिक छंद:- जिस छंद के पदों में असमानता विद्यमान हो वे विषम मात्रिक छंद की श्रेणी में आते हैं। जैसे-कुण्डलिया (दोहा + रोला) , छप्पय (रोला + उल्लाला) आदि। साधारणतया ऐसे छंद दो या दो से अधिक छंदों के सम्मिश्रण से बनते हैं।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
श्रीमान आपकी साहित्य की जानकारी एवं रुचि को मेरा नमन है।
आपका अतिशय आभार।
वाहः मात्रिक छंदों की विस्तृत जानकारी।
शुचिता बहन कामेंट के लिए हार्दिक धन्यवाद।
पूरी जानकारी देता लेख।
बहुत बहुत धन्यवाद