Categories
Archives

भक्ति छंद

“कृष्ण-विनती”

दो भक्ति मुझे कृष्णा।
मेटो जग की तृष्णा।।
मैं पातक संसारी।
तू पापन का हारी।।

मैं घोर अनाचारी।
तू दिव्य मनोहारी।।
चाहूँ करुणा तेरी।
दे दो न करो देरी।।

वृंदावन में जाऊँ।
शोभा ब्रज की गाऊँ।।
मैं वेणु सुनूँ प्यारी।
छानूँ धरती न्यारी।।

गोपाल चमत्कारी।
तेरी महिमा भारी।।
छायी अँधियारी है।
तू तो अवतारी है।।

आशा मन में धारे।
आया प्रभु के द्वारे।।
गाऊँ नित केदारी।
आभा वरनूँ थारी।।

ये ‘बासु’ रचे गाथा।
टेके दर पे माथा।।
दो दर्श उसे नाथा।
राखो सर पे हाथा।।
===========

भक्ति छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)

“तायाग” सजी क्या है।
ये ‘भक्ति’ सुछंदा है।।

“तायाग” = तगण यगण, गुरु
221  122  2
कुल 7 वर्ण प्रति चरण की वर्णिक छंद।
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।
***********

बासुदेव अग्रवाल नमन, ©
तिनसुकिया

4 Responses

  1. वर्णिक भक्ति छंद में भगवान कृष्ण से उनकी भक्ति माँगने के लिए आपने अनूठी विनती की है।
    बहुत ही सारगर्भित हृदय के भक्तिमय उद्गार है आपके।
    भगवान से भगवान की ही भक्ति माँगना भक्त की अलौकिक चाह या कामना होती है इस तथ्य को आपने बहुत ही उत्तम शब्दों से सुसज्जित करते हुए उकेरा है।
    दिल से बधाई देती हूँ।

    1. शुचिता बहन तुम्हारी इस अनूठी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद। तुमने अपनी प्रतिक्रिया में भगवान से जो भक्ति की याचना का महत्व दर्शाया है, वही इस रचना का सार है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *