प्रमिताक्षरा छंद
सजती सदा सजन से सजनी।
शशि से यथा धवल हो रजनी।।
यह भूमि आस धर के तरसे।
कब मेघ आय इस पे बरसे।।
लगता मयंक नभ पे उभरा।
नव चाव रात्रि मन में पसरा।।
जब शुभ्र आभ इसकी बिखरे।
तब मुग्ध होय रजनी निखरे।।
सजना सजे सजनियाँ सहमी।
धड़के मुआ हृदय जो वहमी।।
घिर बार बार असमंजस में।
अब चैन है न इस अंतस में।।
मन में मची मिलन आतुरता।
अँखियाँ करें चपल चातुरता।।
उर में खिली मदन मादकता।
तन में बढ़ी प्रणय दाहकता।।
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प्रमिताक्षरा छंद विधान –
“सजसासु” वर्ण सज द्वादश ये।
‘प्रमिताक्षरा’ मधुर छंदस दे।।
“सजसासु” = सगण जगण सगण सगण।
112 121 112 112 = 12 वर्ण का वर्णिक छंद। चार चरण, दो दो समतुकांत।
लिंक:- वर्णिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
29-11-2016
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
सुंदर शब्द चयन के साथ ही बहुत सुंदर श्रृंगारिका।
शुचिता बहन तुम्हारी मोहक टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।
आपकी मन मोहती मधुर प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।
बहुत प्यारी श्रृंगारिक कविता हुई है। साथ में पूरा विधान भी समझाया गया है।