भक्ति छंद
“कृष्ण-विनती”
दो भक्ति मुझे कृष्णा।
मेटो जग की तृष्णा।।
मैं पातक संसारी।
तू पापन का हारी।।
मैं घोर अनाचारी।
तू दिव्य मनोहारी।।
चाहूँ करुणा तेरी।
दे दो न करो देरी।।
वृंदावन में जाऊँ।
शोभा ब्रज की गाऊँ।।
मैं वेणु सुनूँ प्यारी।
छानूँ धरती न्यारी।।
गोपाल चमत्कारी।
तेरी महिमा भारी।।
छायी अँधियारी है।
तू तो अवतारी है।।
आशा मन में धारे।
आया प्रभु के द्वारे।।
गाऊँ नित केदारी।
आभा वरनूँ थारी।।
ये ‘बासु’ रचे गाथा।
टेके दर पे माथा।।
दो दर्श उसे नाथा।
राखो सर पे हाथा।।
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भक्ति छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
“तायाग” सजी क्या है।
ये ‘भक्ति’ सुछंदा है।।
“तायाग” = तगण यगण, गुरु
221 122 2
कुल 7 वर्ण प्रति चरण की वर्णिक छंद।
4 चरण, दो-दो चरण समतुकांत या चारों चरण समतुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल नमन, ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
भक्ति छंद में कृष्ण भक्ति की बड़ी ही मोहक रचना है आपकी।
आपकी हृदय खिलाती टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद।
वर्णिक भक्ति छंद में भगवान कृष्ण से उनकी भक्ति माँगने के लिए आपने अनूठी विनती की है।
बहुत ही सारगर्भित हृदय के भक्तिमय उद्गार है आपके।
भगवान से भगवान की ही भक्ति माँगना भक्त की अलौकिक चाह या कामना होती है इस तथ्य को आपने बहुत ही उत्तम शब्दों से सुसज्जित करते हुए उकेरा है।
दिल से बधाई देती हूँ।
शुचिता बहन तुम्हारी इस अनूठी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद। तुमने अपनी प्रतिक्रिया में भगवान से जो भक्ति की याचना का महत्व दर्शाया है, वही इस रचना का सार है।