वर्णिक छंद “परिभाषा” :- (छंद परिभाषा)
वर्णिक छंद उसे कहा जाता है जिसके प्रत्येक चरण में वर्णों का क्रम तथा वर्णों की संख्या नियत रहती है। जब लघु गुरु का क्रम और उनकी संख्या निश्चित है तो मात्रा स्वयंमेव सुनिश्चित है। वर्णिक छंद की रचना में उस के वर्णों के क्रम का सम्यक ज्ञान और पद के मध्य की यति या यतियों का ज्ञान होना ही पर्याप्त है। वर्णिक छंदो में रचना करने के लिए ह्रस्व या दीर्घ मात्रा के अनुसार केवल शब्द चयन आवश्यक है। जैसे – मेरी “सुमति छंद” की रचना का एक उदाहरण देखें जिसका वर्ण विन्यास- 111 212 111 122 है।
“प्रखर भाल पे हिमगिरि न्यारा।
बहत वक्ष पे सुरसरि धारा।।
पद पखारता जलनिधि खारा।
अनुपमेय भारत यह प्यारा।।”
रचना के हर चरण में ठीक 12 वर्ण हैं। वर्णिक छंदों में छंद के ह्रस्व दीर्घ के क्रम से कहीं भी च्युत नहीं हुआ जा सकता। वर्ण संख्या के अनुसार वर्णिक छंदों की दो श्रेणियाँ हैं-
1. साधारण वर्ण वृत्त- 26 वर्ण प्रति चरण तक के छंद इस श्रेणी में आते हैं। जैसे- वापी, सुमति, इन्द्रवज्रा, मन्दाक्रांता आदि।
2. दण्डक वर्ण वृत्त- प्रति चरण 26 वर्ण से अधिक के छंद इस श्रेणी में आते हैं। जैसे – कलाधर छंद (31 वर्ण प्रति चरण)
स्वरूप के आधार पर वर्णिक छंदो के 3 विभेद हैं-
सम वर्ण वृत्त:- जिस छंद के सभी चरणों का लक्षण एक समान रहता है वे सम वर्ण वृत्त कहलाते हैं। जैसे – वापी, सुमति, इन्द्रवज्रा, कलाधर आदि।
अर्धसम वर्ण वृत्त:- जैसे मात्रिक छंदों में दोहा, सोरठा, उल्लाला आदि अर्धसम मात्रिक छंद हैं वैसे ही वर्ण वृत्त में भी अर्धसम वर्ण वृत्त होते हैं। अर्धसम छंदों में चरण क्रमांक एक तीन का और चरण क्रमांक दो चार का एक ही विधान रहता है। पर एक दल के दोनों चरणो (1 और 2) का विधान एक दूसरे से अलग रहता है। जैसे दोहा में प्रथम चरण में 13 मात्राएँ रहती हैं और दूसरे चरण में 11 मात्राएँ रहती हैं। अर्धसम छंद द्विपदी के रूप में लिखे जाते हैं और मात्रिक छंदों में पद के दोनों चरण अर्ध विराम से एक दूसरे से अलग रहते हैं जबकि वर्णिक छंदों के चरण पूर्ण विराम चिन्ह से। वर्ण वृत्त के पद के प्रथम चरण और द्वितीय चरण के अंत्याक्षर एक समान हों तो इन दोनों चरण की तुक मिलाई जाती है अन्यथा चरण एक और तीन तथा चरण दो और चार की तुक मिलाई जाती है। जैसे – वियोगिनी छंद, द्रुतमध्या छंद, यवमती छंद आदि।
वर्ण विषम छंद:- छंद के चारों चरण लक्षण में विषम होते हैं। जिन चरणों का अंत समान होता है उनकी तुक मिला दी जाती है। जैसे- सौरभक छंद, द्रुतमध्या छंद आदि।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
Cool
Nice definition of varnic Chand
Thank you so much
आ0 निखिल पाँडेजी आभार।
वर्णिक छंद की अति उत्तम विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आपका हार्दिक आभार।
बहुत ही ज्ञानवर्धक है।
शुचिता बहन तुम्हारी प्रतिक्रिया का हार्दिक धन्यवाद।
शानदार
रौनक धन्यवाद।