शार्दूलविक्रीडित छंद
“हिन्दी यशोगान”
हिन्दी भारत देश के गगन में, राकेश सी राजती।
भाषा संस्कृत दिव्य हस्त इस पे, राखे सदा साजती।।
सारे प्रांत रखे कई विविधता, देती उन्हे एकता।
हिन्दी से पहचान है जगत में, देवें इसे भव्यता।।
ये उच्चारण खूब ही सुगम दे, जैसा लिखो वो पढ़ो।
जो भी संभव जीभ से कथन है, वैसा इसी में गढ़ो।।
ये चौवालिस वर्ण और स्वर की, भाषा बड़ी सोहनी।
हिन्दी को हम मान दें हृदय से, ये विश्व की मोहनी।।
छंदों को गतिशीलता मधुर दे, ये भाव संचार से।
भावों को रस, गंध, रूप यह दे, नाना अलंकार से।।
शब्दों का सुविशाल कोष रखती, ये छंद की खान है।
गीता, वेद, पुरान, शास्त्र- रस के, संगीत की गान है।।
मीरा ने इसमें रचे भजन हैं, ये सूर की तान है।
हिन्दी पंत, प्रसाद और तुलसी, के काव्य का पान है।।
मीठी ये गुड़ के समान लगती, सुस्वाद सारे चखें।
हिन्दी का हम शीश विश्व भर में, ऊँचा सभी से रखें।।
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शार्दूलविक्रीडित छंद विधान – (वर्णिक छंद परिभाषा)
“मैं साजूँ सतताग” वर्ण दश नौ, बारा व सप्ता यतिम्।
राचूँ छंद रसाल चार पद की, ‘शार्दूलविक्रीडितम्’।।
“मैं साजूँ सतताग” = मगण, सगण, जगण, सगण, तगण, तगण और गुरु।
222 112 121 112// 221 221 2
आदौ राम, या कुन्देन्दु, कस्तूरी तिलकं जैसे मनोहारी श्लोकों की जननी छंद।इस चार पदों की वर्णिक छंद के प्रत्येक पद में कुल 19 वर्ण होते हैं और यति 12 और 7 वर्ण पर है।
दो दो या चारों पद सम तुकांत।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
Sriman
Pranam
Apka lekh pada. Bahut sadhuvad
Main yeh janana chahta hun ki ya kundendu tusharhar dhavla kiski rachna hai aur kis puran me hai.
Vivekanand Singh
Ballia Uttar Pradesh
8765858826
पुरानों के रचयिता वेदव्यास जी माने गये हैं।
संदर्भ अज्ञात।
हिंदी यशोगान बहुत बढ़िया.
मधुर प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद।
जितनी ओजपूर्ण छंद उतनी ही हिन्दी वंदन की ओजपूर्ण रचना। नमन आपके ज्ञान और कौशल को।
आपकी उत्साह वर्धन करती टिप्पणी का आत्मिक अभिनंदन।
अद्भुत लेखन क्षमता है आपकी भैया।
इतनी कठिन वर्णिक छंद में आपने अपने भावों को जो पंख प्रदान किये हैं वह दुर्लभ है।
हिंदी भाषा के गुणों की झड़ी लगादी आपने तो।
वाहः जितनी प्रसंसा करूँ कम ही होगी।
साधुवाद।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया से हमारी सनातन छंदों पर काव्य सृजन की नयी प्रेरणा जगती है। बहुत बहुत धन्यवाद।