शार्दूलविक्रीडित छंद
‘माँ लक्ष्मी वंदना’
सारी सृष्टि सदा सुवासित करे, देती तुम्ही भव्यता।
लक्ष्मी हे कमलासना जगत में, तेरी बड़ी दिव्यता।।
पाते वो धन सम्पदा सहज ही, ध्यावे तुम्हे जो सदा।
आकांक्षा मन की सभी फलित हो, जो भक्त पूजे यदा।।
तेरा ही वरदान प्राप्त करके, सम्पन्न होते सभी।
झोली तू भरती सदैव धन से, खाली न होती कभी।।
भक्तों को रखती सदा शरण में, ऐश्वर्य से पालती।
देती वैभव, मान और क्षमता, संताप को टालती।।
हीरे का अति दिव्य ताज सर पे, आभा बड़ी सोहनी।
चाँदी की चुनड़ी चमाक चमके, माँ तू लगे मोहनी।।
सोने की तगड़ी सजी कमर पे, मोती जड़े केश है।
माता तू धनवान एक जग में, मोहे सदा वेश है।।
हे लक्ष्मी हरिवल्लभी नमन है, तेरी करूँ आरती।
तेरा ही गुणगान नित्य करती, मातेश्वरी भारती।।
सेवा, त्याग, परोपकार वर दो, संसार से तार माँ।
श्रद्धा से शुचि भक्ति नित्य करती, नैया करो पार माँ।।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
जय माँ लक्ष्मी सदा भरे भंडार।
माँ लक्ष्मी की कृपा से आपका भी भंडार हमेशा भरा रहे।
शुचिता बहन इस कठिन वर्णिक छंद में मातेश्वरी लक्ष्मी जी की बहुत सुंदर स्तुति प्रस्तुत की है।
उत्साहवर्धन एवं आशीर्वाद हेतु हृदय से आभारी हूँ भैया आपकी।