Categories
Archives

प्लवंगम छंद

“सरिता”

भूधर बिखरें धरती पर हर ओर हैं।
लुप्त गगन में ही कुछ के तो छोर हैं।।
हैं तुषार मंडित जिनके न्यारे शिखर।
धवल पाग भू ने ज्यों धारी शीश पर।।

एक सरित इन शैल खंड से बह चली।
बर्फ विनिर्मित तन की थी वह चुलबली।।
ले अथाह जल अरु उमंग मन में बड़ी।
बलखाती इठलाती नदी निकल पड़ी।।

बाधाओं को पथ की सारी पार कर।
एक एक भू-खंडों को वह अंक भर।।
राहों के सब नाले, मिट्टी, तरु बहा।
हुई अग्रसर गर्जन करती वह महा।।

कभी मधुरतम कल कल ध्वनि से वह बहे।
श्रवणों में ज्यों रागों के सुर आ रहे।।
कभी भयंकर रूप धरे तांडव मचे।
धारा में जो भी पड़ जाये ना बचे।।

लदी हुई मानव-आशा के भार से।
सींचे धरती वरदानी सी धार से।
नगरों, मैदानों को करती पार वह।
हर्ष मोद का जग को दे भंडार वह।।

मधुर वारि से सींच अनेकों खेत को।
कृषकों के वह साधे हर अभिप्रेत को।।
हरियाली की खुशियों भरी खिला कली।
वह अथाह सागर के पट में छिप चली।।
********************

प्लवंगम छंद विधान –
यह चार पदों का 21 मात्रा का सम पद मात्रिक छंद है। दो दो पद सम तुकांत रहने आवश्यक हैं।
मात्रा बाँट:- अठकल*2 – द्विकल -लघु – द्विकल
(अठकल चौकल या 3-3-2 हो सकता है। द्विकल 2 या 11 हो सकता है।)

मात्रिक छंद परिभाषा
================

बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
16-04-2016

4 Responses

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *