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संत छंद

‘संकल्प’

हुई भोर नयी, आओ स्वागत करलें।
चलो साथ बढ़ें, नव ऊर्जा हिय भरलें।।
खिली धूप धवल, कहाँ तिमिर अब गहरा।
रुचिर पुष्प खिले, बाग रहा है लहरा।।

करें कार्य वही, जिससे निज मन सरसे।
बनें निपुण सदा, उत्सुकता हिय बरसे।।
नया जोश जगा, नव राहें हम गढलें।
प्रबल भाव भरें, प्रगति शिखर पर चढ़ लें।।

सदा धैर्य रखें, धार शांति निज मन में।
रहें सदा सजग, ढूँढें गुण हर जन में।।
अटल होय बढ़ें, निडर बनें, हम दमकें।
बढ़े कार्य लगन, शौर्य भाव रख चमकें।।

उच्च भाव रहे, ऊँचे देखें सपने।
अडिग खड़े रहें, हम जीवन में तपने।।
सुगम पंथ चुनें, निश्चय भाव प्रबल हों।
चलो साथ चलें, निष्ठा अजय सबल हों।।

मात्रिक छंद परिभाषा

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संत छंद विधान-

संत छंद 21 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 9 और 12 मात्रा के दो यति खंड में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
3 6, 6 6

छक्कल की संभावित संभावनाएं-
(3+3 या 4+2 या 2+4) हो सकते हैं।

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में 112 (सगण) अनिवार्य है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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