कनक मंजरी छंद
“गोपी विरह”
तन-मन छीन किये अति पागल,
हे मधुसूदन तू सुध ले।
श्रवणन गूँज रही मुरली वह,
जो हम लीं सुन कूँज तले।।
अब तक खो उस ही धुन में हम,
ढूंढ रहीं ब्रज की गलियाँ।
सब कुछ जानत हो तब दर्शन,
देय खिला मुरझी कलियाँ।।
द्रुम अरु कूँज लता सह बातिन,
में हर गोपिण पूछ रही।
नटखट श्याम सखा बिन जीवित,
क्यों अब लौं, निगलै न मही।।
विहग रहे उड़ छू कर अम्बर,
गाय रँभाय रहीं सब हैं।
हरित सभी ब्रज के तुम पादप,
बंजर तो हम ही अब हैं।।
मधुकर एक लखी तब गोपिन,
बोल पड़ीं फिर वे उससे।
भ्रमर कहो किस कारण गूँजन,
से बतियावत हो किससे।।
इन परमार्थ भरी कटु बातन,
से कछु काम नहीं अब रे।
रख अपने तक ज्ञान सभी यह,
भूल गईं सुध ही जब रे।।
मधुकर श्यामल मोहन श्यामल,
तू न कहीं छलिया वह ही।
कलियन रूप चखे नित नूतन,
है गुण श्याम समान वही।।
परखन प्रीत हमार यहाँ यदि,
रूप मनोहर वो धर लें।
यदि न कहो उनसे झट जा कर,
दर्श दिखा दुख वे हर लें।।
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कनक मंजरी छंद विधान –
प्रथम रखें लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ रख लें।
सु’कनक मंजरि’ छंद रचें यति तेरह वर्ण तथा दश पे।।
लघु चार तबै षट “भा” गण संग व ‘गा’ = 4 लघु + 6भगण (211) + 1 गुरु।
1111+ 211+ 211+ 211, 211+ 211+ 211+ 2 = कुल 23 वर्ण की वर्णिक छंद।
शैलसुता छंद विधान – इसी छंद में जब यति की बाध्यता न हो तो यही “शैलसुता छंद” कहलाती है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
इस मधुर छंद कनक मंजरी में जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर चले गये तब गोपियों के हृदय की विरह अवस्था का बहुत मार्मिक वर्णन हुआ है।
आपकी अति हर्ष प्रदान करती टिप्पणी का हार्दिक धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
कनकमंजरी छंद में गोपियों की विरह वेदना का सांगोपांग वर्णन किया है आपने इस वर्णिक कठिन छंद में। अद्भुत लेखन।
वाहः अति प्रसंसनीय सृजन हेतु हार्दिक बधाई आपको।
शुचिता बहन तुम्हारी सुखकारी प्रतिक्रिया का हृदयतल से धन्यवाद।