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दीप छंद, “सर्दी”

चाहूँ गरम चाय,
मौसम गजब ढाय।
बरसे बहुत मेह,
काँपे सकल देह।।

सर्दी बहुत आज,
करने सकल काज।
कितनी कड़क भोर,
दिन में तमस घोर।।

कड़के गरज व्योम,
अकड़े सकल रोम।
कम्बल निकट लाय,
सो लूँ तनिक खाय।।

हो प्रिय अगर पास,
होता दिवस खास।
व्याकुल हृदय मीत,
तुम बिन कठिन शीत।।

मात्रिक छंद परिभाषा

शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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