मत्तगयंद सवैया छंद
माँ दुर्गा (1)
पाप बढ़े चहुँ ओर भयानक हाथ कृपाण त्रिशूलहु धारो।
रक्त पिपासु लगे बढ़ने दुखके महिषासुर को अब टारो।
ताण्डव से अरि रुण्डन मुण्डन को बरसा कर के रिपु मारो।
नाहर पे चढ़ भेष कराल बना कर ताप सभी तुम हारो।।
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माँ दुर्गा (2)
नेत्र विशाल हँसी अति मोहक तेज सुशोभित आनन भारी।
क्रोधित रूप प्रचण्ड महा अरि के हिय को दहलावन कारी।
हिंसक शोणित बीज उगे अरु पाप बढ़े सब ओर विकारी।
शोणित पी रिपु नाश करो पत भक्तन की रख लो महतारी।।
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माँ दुर्गा (3)
शुम्भ निशुम्भ हने तुमने धरणी दुख दूर सभी तुम कीन्हा।
त्राहि मची चहुँ ओर धरा पर रूप भयावह माँ तुम लीन्हा।
अष्ट भुजा अरु आयुध भीषण से रिपु नाशन माँ कर दीन्हा।
गावत वेद पुराण सभी यश जो वर माँगत देवत तीन्हा।।◆◆◆◆
मत्तगयंद सवैया विधान –
मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।
(211 211 211 211 211 211 211 22 )
सवैया छंद यति बंधनों में बंधे हुये नहीं होते हैं परंतु कोई चाहे तो लय की सुगमता के लिए इसके चरण में क्रमशः 12 -11 वर्ण पर 2 यति खंड रख सकता है ।चूंकि यह एक वर्णिक छंद है अतः इसमें गुरु के स्थान पर दो लघु वर्ण का प्रयोग करना अमान्य है।
सवैया छंद की जानकारी की लिंक –> सवैया छंद विधान
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
मत्तगयंद गयंद फिर्यो जद काव्य बनीं हरषी अति भारी।
शब्द भर्यो मन हास हुलास हुयो जु उजास हँसी महतारी।
नामन पावन छंद लख्यौ लख लेखन बार हि बार पुकारी।
धन्य सुधन्य सुशारद पूत बढो नित और सदा हि अगारी।
जय गोविंद शर्मा
लोसल
बहुत ही मोहक सवैयों में माँ जगदंबा का स्तुति गान हुआ है।
आपकी प्रोत्साहन से भरी प्रतिक्रिया का हृदय से धन्यवाद व्यक्त करता हूँ।
सवैया छंद मुझे बहुत पसंद है। इसको गाकर बहुत आत्मसंतुष्टि होती है।
अपनी विद्वता का परिचय देते हुए सौम्य अति मोहक भवानी महिमा का मत्तगयंद सवैया द्वारा गुणगान किया है भैया आपने।
अति सुंदर सृजन।
शुचिता बहन सवैया छंद गाने में बहुत मधुर होता ही है। धरती पर बढते पापों से व्यथित हो यह रचना आक्रोशित मन से लिखी थी मैंने अतः माता का रौद्र रूप रचना में परिलक्षित हुआ है।
रचना पर तुम्हारी मधुर टिप्पणी का आत्मिक धन्यवाद।