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नरहरि छंद

“जय माँ दुर्गा”

जय जग जननी जगदंबा, जय जया।
नव दिन दरबार सजेगा, नित नया।।
शुभ बेला नवरातों की, महकती।
आ पहुँची मैया दर पर, चहकती।।

झन-झन झालर झिलमिल झन, झनकती।
चूड़ी माता की लगती, खनकती।।
माँ सौलह श्रृंगारों से, सज गयी।
घर-घर में शहनाई सी, बज गयी।।

शुचि सकल सरस सुख सागर, सरसते।
घृत, धूप, दीप, फल, मेवा, बरसते।।
चहुँ ओर कृपा दुर्गा की, बढ़ रही।
है शक्ति, भक्ति, श्रद्धा से, तर मही।।

माता मन का तम सारा, तुम हरो।
दुख से उबार जीवन में, सुख भरो।।
मैं मूढ़ न समझी पूजा, विधि कभी।
स्वीकार करो भावों को, तुम सभी।।
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नरहरि छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)

नरहरि छंद एक सम पद मात्रिक छंद है, जिसमें प्रति पद १९ मात्रा रहती हैं। १४, ५ मात्रा पर यति का विधान है। दो-दो या चारों पद समतुकांत होते हैं। इसका मात्रा विन्यास निम्न है-

१४ मात्रिक चरण की प्रथम दो मात्राएँ सदैव द्विकल के रूप में रहती हैं जिसमें ११ या २ दोनों रूप मान्य हैं। बची हुई १२ मात्रा में चौकल अठकल की निम्न तीन संभावनाओं में से कोई भी प्रयोग में लायी जा सकती है।
तीन चौकल,
चौकल + अठकल,
अठकल + चौकल
दूसरे चरण की ५ मात्राएँ लघु लघु लघु गुरु(S) रूप में रहती हैं।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

4 Responses

  1. शुचिता बहन तुमने नरहरि छंद में माँ दुर्गा के दिव्य रूप की झाँकी दर्शते हुए माँ की भक्ति रस से परिपूर्ण वंदना पटल पर प्रस्तुत की है। साथ ही इस नये छंद के विषय में पूर्ण जानकारी भी दी है जिससे नवसृजक बहुत ही लाभान्वित होंगे।

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