मनहरण घनाक्षरी
होली के रंग (1)
होली की मची है धूम, रहे होलियार झूम,
मस्त है मलंग जैसे, डफली बजात है।
हाथ उठा आँख मींच, जोगिया की तान खींच,
मुख से अजीब कोई, स्वाँग को बनात है।
रंगों में हैं सराबोर, हुड़दंग पुरजोर,
शिव के गणों की जैसे, निकली बरात है।
ऊँच-नीच सारे त्याग, एक होय खेले फाग,
‘बासु’ कैसे एकता का, रस बरसात है।।
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होली के रंग (2)
फाग की उमंग लिए, पिया की तरंग लिए,
गोरी जब झूम चली, पायलिया बाजती।
बाँके नैन सकुचाय, कमरिया बल खाय,
ठुमक के पाँव धरे, करधनी नाचती।
बिजुरिया चमकत, घटा घोर कड़कत,
कोयली भी ऐसे में ही, कुहुक सुनावती।
पायल की छम छम, बादलों की रिमझिम,
कोयली की कुहु कुहु, पञ्च बाण मारती।।
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होली के रंग (3)
बजती है चंग उड़े रंग घुटे भंग यहाँ,
उमगे उमंग व तरंग यहाँ फाग में।
उड़ता गुलाल भाल लाल हैं रसाल सब,
करते धमाल दे दे ताल रंगी पाग में।
मार पिचकारी भीगा डारी गोरी साड़ी सारी,
भरे किलकारी खेले होरी सारे बाग में।
‘बासु’ कहे हाथ जोड़ खेलो फाग ऐंठ छोड़,
किसी का न दिल तोड़ मन बसी लाग में।।
बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया
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मित्रों की छंदों पर प्रतिक्रिया
मिथिलेश वामनकारजी
खूब लिखे छंद जय जय बासुदेव नन्द
एक एक बंद आज हृदय को भा गए
पायल की छमछम, जगमग साड़ियों की
गोरे-गोरे मुखड़े कहाँ से ले के आ गए
फाग की तरंग लिखी मन की उमंग लिखी
मारी पिचकारी और ओबीओ पे छा गए
मन की ये पिचकारी वाह वाह छोड़ रही
छंद मन छूते-छूते मन में समा गए
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अशोक कुमार रक्ताले जी
फागुन का राग कहीं, फागुन के रंग कहीं,
तीनों छंद फागुन की, मीठी सी तरंग हैं |
गोरी का शृंगार गलहार और प्यार कहीं ,
भावना में जहां तहां , फागुन के रंग हैं ,
शिव के गणों की टोली, मतवाली फाग गाती,
नर-नारी यहाँ वहाँ, देखो सब दंग हैं,
स्वीकारें बधाई वासुदेव जी श्रृंगार पर ,
पढ़—पढ़ ओ बी ओ के , गण भी मलंग हैं ||
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश के सम्मानित समाचारपत्र और अधिकांश प्रतिष्ठित वेब साइट में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिन्दी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
प्रकाशित पुस्तकें- गूगल प्ले स्टोर पर मेरी दो निशुल्क ई बुक प्रकाशित हैं।
(1) “मात्रिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 37RT28H2PD2 है। (यह 132 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें मात्रिक छंदों की मेरी 91 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘मात्रिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 160 के करीब मात्रिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
(2) “वर्णिक छंद प्रभा” जिसकी गूगल बुक आइ डी :- 509X0BCCWRD है। (यह 134 पृष्ठ की पुस्तक है जिसमें वर्णिक छंदों की मेरी 95 कविताएँ विधान सहित संग्रहित हैं। पुस्तक के अंत में ‘वर्णिक छंद कोष’ दिया गया है जिसमें 430 के करीब वर्णिक छंद विधान सहित सूचीबद्ध हैं।)
मेरा ब्लॉग:
होली पर तीनों ही घनाक्षरी एक से बढ़कर एक।
पाठकों की प्रतिक्रिया बहुत ही शानदार, पढ़कर मजा आ गया।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय लुभाती प्रतिक्रिया पढ हृदय बाग बाग है।
होली के पावन पर्व पर होली के विविध रंगों से रंगी घनाक्षरियाँ पढ कर मन होलीमय हो उठा।
आपकी मधुर टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।