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मोहन छंद

‘होली प्रेम’

केशरी, घटा घनी, वृक्ष सकल, झूम रहे।
मोहनी, बयार को, मोर सभी, चूम रहे।।
दृश्य यह, प्रेमभरा, राधा को, तंग करे।
श्याम कब, आओगे, हाथों में, चंग धरे।।

रंग से, अंग रंग, पिचकारी, भर लाओ।
गोपियाँ, रूठ रही, कहें सभी, अब आओ।।
भाव सब, श्याम सुने, दौड़ पड़े, गलियों में।
ढूँढते, राधा को, बागों की, कलियों में।

मोह से, मोह लिया, मोह भरी, बात करे।
कृष्ण की, बाहों पर, राधा के, नैन झरे।।
डूबने, श्याम लगे, नेह भरी, वृष्टि झड़ी।
देवगण, नृत्य करे, प्रेम सुधा, बरस पड़ी।

फाग में, प्रेम कलश, दोनों पर, छलक पड़े।
श्याम से, श्यामा के, मतवाले, नैन लड़े।।
ओढ़नी, सरक-सरक, कान्हा पर, सरक गई।
हेम सी, श्री जी जू, मोहन पर, ढ़रक गई।।

मात्रिक छंद परिभाषा

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मोहन छंद विधान-

मोहन छंद 23 मात्रा प्रति पद की सम मात्रिक छंद है।
यह 5, 6, 6, 6 मात्राओं के चार यति खंडों में विभक्त रहती है। दो दो या चारों पद समतुकांत होते हैं।

इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
212, 222, 222, 22S
5 + 6 + 6 + 6 = 23

चूंकि यह मात्रिक छंद है अतः 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है, किंतु अंत में गुरु वर्ण अनिवार्य है। छक्कल के नियम अनुपालनिय है।
छंद प्रभाकर में अंत 211S को निभाया गया है , लेकिन इसकी बाध्यता नहीं लिखी गयी है।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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