लीला छंद
“शराब लत”
मच जाता नित बवाल।
पत्नी पूछे सवाल।।
क्यूँ पीते तुम शराब?
लत पाली क्यों खराब?
रिश्ते सब तारतार।
चौपट है कारबार।।
रख डाला सब उजाड़।
जीवन मेरा बिगाड़।।
समझो तुम क्यों न बात?
लत ये है आत्मघात।।
लगता है डर अपार।
आदत लो तुम सुधार।।
मद की यह घोर प्यास।
रोके आत्मिक विकास।।
बात न मेरी नकार।
कुछ तो करलो विचार।।
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लीला छंद विधान – (मात्रिक छंद परिभाषा)
लीला छंद बारह मात्रा प्रति चरण का मात्रिक छंद है जिसका चरणान्त जगण (121) से होना अनिवार्य होता है।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
अठकल + जगण(121) =12 मात्राएँ
अठकल में 4+4 या 3+3+2 दोनों हो सकते हैं।
दो दो चरण समतुकांत होने चाहिए।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
वाह शुचिता बहन लीला छंद में पत्नी की लताड़ के रूप में अत्यंत प्यारी रचना।
हार्दिक आभार भैया।
शराब जैसी घर बार उजाड़ने वाली लत पर बहुत सुंदर विचार व्यक्त किए हैं आपने। सार्थक सृजन।
उत्साहवर्धन हेतु अतिशय आभार आपका।