सारस छंद ‘जीवन रहस्य’
कार्य असम्भव कुछ भी, है न कभी हो सकता।
ठान रखो निज मन में, रख प्रतिपल उत्सुकता।।
सोच कभी मत यह लो, मैं हरदम असफल हूँ।
पूर्ण भरोसा यह रख, मैं प्रतिभा, मैं बल हूँ।।
ठेस (चोट) कभी लग सकती, लेकिन उठ फिर चलना।
कीच मिले मत घबरा, पंकज बन कर खिलना।।
शौर्य सदा हिय रखना, डरकर तुम मत रुकना।
शीश उठा कर चलना, हार कभी मत झुकना।।
अन्य कभी भी दुख का, कारण हो नहि सकता।
सर्व सुमंगलमय कर, धार रखो नैतिकता।।
धन्य सकल जन होते, स्वर मधुमय जब बिखरे।
भाव दिखे मुख पर भी, सुंदर आभा निखरे।।
सोच करो निर्णय यह, क्या मिलना है हमको।
ज्योति भरो जीवन में, हर निज मन के तम को।।
भाव रखो उत्तम नित, लक्ष्य भरी आकुलता।
भेद यही शास्वत है, ठान लिया वो मिलता।।
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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
सुंदर शिक्षाप्रद रचना।
हार्दिक आभार।
शुचिता बहन सारस छंद में बहुत ही सुंदर सीख देती रचना।
हार्दिक आभार भैया।