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सिंह विलोकित छन्द ‘नारी जिसने सदा दिया’

छवि साँझ दीप सी सदा रही,
मैं तिल-तिल जलकर कष्ट सही।
तम हरकर रोशन सदन किया,
हूँ नारी जिसने सदा दिया।

सरि बनकर पर हित सदा बही,
जग करे प्रदूषित,मौन रही।
गति को बाँधों में जकड़ दिया,
तब रूप वृहत को सिमित किया।

नर के शासन के नियम कड़े,
बन क्रोधित घन से गरज पड़े।
मैं नीर बहाती मेह दुखी,
फिर भी सुख देकर हुई सुखी।

मैं विस्मित भू बन मनन करूँ,
नित अपमानों के घूँट भरूँ।
माँ ने मेरी भी सहन किया,
चुप रहकर सहना सिखा दिया।

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सिंह विलोकित छंद विधान– (मात्रिक छंद परिभाषा)

सिंह विलोकित सोलह मात्राओं की सममात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण,क्रमशः दो-दो समतुकांत रहते हैं। चरणान्त लघु-गुरु(१२) अनिवार्य है।

द्विकल + अठकल + त्रिकल तथा लघु-गुरु या
2 2222 3 1S= 16 मात्रायें।

मात्रा सोलह ही रखें,चरण चार तुकबंद।
दुक्कल अठकल अरु त्रिकल,लघु-गुरु रखलो अंत।।
सम मात्रिक यह छन्द है,बस इतना लो जान।
सिंह विलोकित छन्द का,रट लो आप विधान।।
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शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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