सिंह विलोकित छन्द ‘नारी जिसने सदा दिया’
छवि साँझ दीप सी सदा रही,
मैं तिल-तिल जलकर कष्ट सही।
तम हरकर रोशन सदन किया,
हूँ नारी जिसने सदा दिया।
सरि बनकर पर हित सदा बही,
जग करे प्रदूषित,मौन रही।
गति को बाँधों में जकड़ दिया,
तब रूप वृहत को सिमित किया।
नर के शासन के नियम कड़े,
बन क्रोधित घन से गरज पड़े।
मैं नीर बहाती मेह दुखी,
फिर भी सुख देकर हुई सुखी।
मैं विस्मित भू बन मनन करूँ,
नित अपमानों के घूँट भरूँ।
माँ ने मेरी भी सहन किया,
चुप रहकर सहना सिखा दिया।
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सिंह विलोकित छंद विधान– (मात्रिक छंद परिभाषा)
सिंह विलोकित सोलह मात्राओं की सममात्रिक छन्द है। इसमें चार चरण,क्रमशः दो-दो समतुकांत रहते हैं। चरणान्त लघु-गुरु(१२) अनिवार्य है।
द्विकल + अठकल + त्रिकल तथा लघु-गुरु या
2 2222 3 1S= 16 मात्रायें।
मात्रा सोलह ही रखें,चरण चार तुकबंद।
दुक्कल अठकल अरु त्रिकल,लघु-गुरु रखलो अंत।।
सम मात्रिक यह छन्द है,बस इतना लो जान।
सिंह विलोकित छन्द का,रट लो आप विधान।।
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शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता जी नारी की व्यथा का बहुत सुंदर चित्रण।
हार्दिक आभार आपका।
उतसाहवर्धन हेतु हार्दिक आभार भैया।
शुचिता बहन सिंह विलोकित छंद में नारी की हृदय पीड़ का बहुत सुंदर शब्दों में चित्रण हुआ है। रचना की बहुत बहुत बधाईः।