सूर घनाक्षरी
“विधा”
मिलते विषम दोय, सम-कल तब होय,
सम ही कवित्त को तो, देत बहाव है।
आदि न जगन रखें, लय लगातार लखें,
अंत्य अनुप्रास से ही, या का लुभाव है।
शब्द रखें भाव भरे, लय ऐसी मन हरे,
भरें अलंकार जा का, खूब प्रभाव है।
गाके देखें बार बार, अटकें न मझधार,
रचिए कवित्त जा से, भाव रिसाव है।।
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सूर घनाक्षरी विधान – लिंक –> (घनाक्षरी विवेचन)
चार पदों के इस छंद में प्रत्येक पद में कुल वर्ण संख्या 30 होती है। पद में 8, 8, 8, 6 वर्ण पर यति रखना अनिवार्य है। इस घनाक्षरी में चरणान्त की कोई बाध्यता नहीं, कुछ भी रख सकते हैं।
घनाक्षरी एक वर्णिक छंद है अतः सूर घनाक्षरी में वर्णों की संख्या प्रति पद 30 वर्ण से न्यूनाधिक नहीं हो सकती। चारों पदों में समतुकांतता निभानी आवश्यक है।
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
सीताराम
सूर घनाक्षरी का विधान सूर घनाक्षरी में ही पढ़ने को मिला।बहुत सुंदर विधान की अभिव्यक्ति है।नये-पुराने सभी के लिए यह लाभ प्रदान सिद्ध होगा।भूरिशः बधाई।
आदरणीय बाबाजी आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया का हृदयतल से आभार।
वाहः अति सुंदर। सुर घनाक्षरी में घनाक्षरी विधान को बहुत ही सुंदर, लयात्मक तरीके से आपने समझा दिया।
अद्भुत।
शुचिता बहन तुम्हारी प्रतिक्रिया का बहुत बहुत धन्यवाद।
सूर घनाक्षरी में ही किसी भी प्रकार की घनाक्षरी सृजन की सुंदर विवेचना।
आपकी टिप्पणी का हृदयतल से धन्यवाद।