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सरसी छंद

‘मुन्ना मेरा सोय’

ओ मेघा चुप हो जा मेघा, मुन्ना मेरा सोय।
खिल-खिल हँसता कभी मुलकता, मधुर स्वप्न में खोय।।
घड़-घड़ भड़-भड़ जोर-जोर से, शोर मचाना छोड़।
आँख लगी मुन्ने की अब तो, ओ निर्मम मत तोड़।।

डर कर होंठ निकाले जब-तब, रही पलक भी काँप।
ओ विराट नभ के बिगड़े सुत, मन मुन्ने का भाँप।।
उसका तन कोमल मन भोला, छोटा सा आकार।
ये कैसा बड़पन है तेरा, ये कैसा प्रतिकार।।

कृषक झूमकर तुझे बुलाये, नाचे देखो मोर।
पूरा है आकाश तुम्हारा, धरती का हर छोर।।
प्यासे की तुम प्यास बुझाओ, करलो तुम उपकार।
बिना बुलाये आगन्तुक का, होता कम सत्कार।।

नन्ही सी गोरैया चिड़िया, बचा रही निज नीड़।
वो है मुन्ने की सखि प्यारी, समझो उसकी पीड़।।
संग खेलने मेघा आना, साथ लगाना दौड़।
लेकिन कच्ची नींद न तोड़ो, विनय करूँ कर जोड़।।

सरसी छंद विधान;

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’

तिनसुकिया,असम

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