लावणी छंद गीत
“बेटियाँ”
घर की रौनक होती बेटी, सर्व गुणों की खान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
जब हँसती खुश होकर बेटी, आँगन महक उठे सारा।
मन मृदङ्ग सा बज उठता है, रस की बहती है धारा।।
त्योंहारों की चमक बेटियाँ, जग सागर ये मोती हैं।
प्रेम दया ममता का गहना, यही बेटियाँ होती हैं।।
महक गुलाबों सी बेटी है, कोयल की है तान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।।
बसते हैं भगवान जहाँ खुद, उनके घर यह आती है।
पालन पोषण सर्वोत्तम वह, जिनके हाथों पाती है।।
पल में सारे दुख हर लेती, बेटी जादू की पुड़िया।
दादा दादी के हिय को सुख, देती हरदम ये गुड़िया।।
माँ शारद लक्ष्मी दुर्गा का, होती है सम्मान यही।
बेटी होती जान पिता की, है माँ का अभिमान यही।
मात-पिता के दिल का टुकड़ा, धड़कन बेटी होती है।
रो पड़ता है दिल अपना जब, दुख से बेटी रोती है।।
जाती है ससुराल एक दिन, दो-दो कुल महकानें को।
मीठी बोली से हिय बसकर, घर आँगन चहकाने को।।
बेटी की खुशियों का दामन, अपनी तो मुस्कान यही।
बेटी होती जान पिता की है माँ का अभिमान यही।
लिंक:- लावणी छंद विधान
शुचिता अग्रवाल “शुचिसंदीप”
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
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बेटियों पर बहुत प्यारी रचना हुई है।
प्रोत्साहन हेतु हार्दिक आभार भैया आपका।
शुचिता बहन लावणी छंद में बहुत प्यारा गीत लिखा है।
हार्दिक आभार भैया।