विष्णुपद छन्द,” फूल मोगरे के”
आँगन में झर-झर गिरते थे,फूल मोगरे के,
याद बहुत आते हैं वो दिन,पागल भँवरे के।
सुन्दर तितली आँखमिचौली, भौरे से करती,
व्याकुल थी पर आँगन में वो,आने से डरती।
करदे जो मदहोश सभी को,खुश्बू न्यारी सी,
प्रेम हिलौर हृदय में उठती,अद्भुत प्यारी सी।
सुमन ओस की बूँदें पाकर,झूम-झूम जाता,
अल्हड़ गौरी की बैणी पा,खुद पर इतराता।
खिले फूल सुरभित अति कोमल,धवल रूप धारे,
नई उमंगों में भर उठते,मुरझे मन सारे।
सुखद समीर सुगन्ध बिखेरे,खुशियाँ भर लाती,
‘शुचि’ मनमंदिर प्रेम तरंगें,प्रणय गीत गाती।
■■■■■■■■
विष्णुपद छन्द विधान- (मात्रिक छंद परिभाषा)
विष्णुपद छन्द सम मात्रिक छन्द है। यह 26 मात्राओं का छन्द है जिसमें 16,10 मात्राओं पर यति आवश्यक है।अंत में वाचिक भार 2 यानि गुरु का होना अनिवार्य है।कुल चार चरण होते हैं क्रमागत दो-दो या चारों चरण समतुकांत होने चाहिये।
●●●●●●●●●●
शुचिता अग्रवाल,’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया,असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
वाह मोगरे के झरते फूलों में छुपी पुरानी यादों का सुंदर चित्रण।
आभार
बहुत प्यारी कविता है।
आभार जी।
अद्भुत रचना।
बहुत खुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया पढ़कर।
छंद विष्णुपद रच दी शुचिता, कविकुल की शोभा।
आँगन में झरते फूलों सी, मधुरस की लोभा।।
वाह!!! शुचिता बहन बहुत ही प्यारी और मधुर छंद तुमने सविधान कविकुल में पोस्ट की है।
आपकी काव्यात्मक टिप्पणी से अत्यधिक खुशी हुई भैया।