सरसी छंद
‘हे नाथ’
स्वार्थहीन अनुराग सदा ही, देते हो भगवान।
निज सुख-सुविधा के सब साधन, दिया सदा ही मान।।
करुण कृपा बरसा कर मुझपर, पूरी करते चाह।
इस कठोर जीवन की तुमने, सरल बनायी राह।।
कभी कहाँ संतुष्ट हुई मैं, सदा देखती दोष।
सहज प्राप्त सब होता रहता, फिर भी उठता रोष।।
किया नहीं आभार व्यक्त भी, मैं निर्लज्ज कठोर।
मर्यादा की सीमा लाँघी, पाप किये अति घोर।।
अनदेखा दोषों को करके, देते हो उपहार।
काँटें पाकर भी ले आते, फूलों का नित हार।।
एक पुकार उठे जो मन से, दौड़ पड़े प्रभु आप।
पल में ही फिर सब हर लेते, जीवन के संताप।।
करो कृपा हे नाथ विनय मैं, करती बारम्बार।
श्रद्धा तुझमें बढ़ती जाये, तुम जीवन सुखसार।।
तेरा तुझको सबकुछ अर्पण, नाथ करो कल्याण।
हाथ पकड़ मुझको ले जाना, जब निकलेंगे प्राण
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शुचिता अग्रवाल’शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम
नाम-
शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
(विद्यावाचस्पति)
जन्मदिन एवम् जन्मस्थान-
26 नवम्बर 1969, सुजानगढ़ (राजस्थान)
पिता-स्वर्गीय शंकर लालजी ढोलासिया
माता- स्वर्गीय चंदा देवी
परिचय-मैं असम प्रदेश के तिनसुकिया शहर में रहती हूँ। देश की अनेक साहित्यिक प्रतिष्ठित शाखाओं से जुड़ी हुई हूँ।
सम्मान पत्र- कविसम्मेलन,जिज्ञासा,रचनाकार,साहित्य संगम संस्थान,काव्य रंगोली,आदि संस्थाओं से सम्मान पत्र प्राप्त हुए।
काव्य रंगोली’ द्वारा ‘समाज भूषण-2018’
“आगमन” द्वारा ‘आगमन काव्य विदुषी सम्मान-2019’ एवं साहित्य के क्षेत्र में प्राइड वीमेन ऑफ इंडिया ‘2022’ प्राप्त हुआ है।
साहित्य संगम संस्थान द्वारा “विद्यावाचस्पति(डॉक्टरेट)” की मानद उपाधि से सम्मानित हुई हूँ।
प्रकाशित पुस्तकें- मेरे एकल 5 कविता संग्रह “दर्पण” “साहित्य मेध” “मन की बात ” “काव्य शुचिता” तथा “काव्य मेध” हैं। मेरी साझा पुस्तकों,पत्रिकाओं,समाचार पत्रों तथा वेबसाइट्स पर समय-समय पर रचनाएं प्रकाशित होती हैं।
शुचिता बहन सरसी छंद में भगवान की अहेतुकी कृपा का दिग्दर्शन कराते हुए बहुत सुंदर वन्दना हुई है।
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया पाकर लेखन को हमेशा ही सम्बल मिलता है।
आपका आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन ही है जो मैं थोड़ा छंद सृजन कर पा रही हूँ।
आभार आपका ।
बहुत ही सारगर्भित विनती।