शांति धारो।
दुःख टारो।।
सदा सुखदा।
हरे विपदा।।
रस-खान है।
सुख पान है।।
यदि शांति है।
नहिँ भ्रांति है।।
कटुता हरे।
मृदुता भरे।।
नित सुहाती।
दिव्य थाती।।
ले सुस्तियाँ।
दे मस्तियाँ।।
सुख-सुप्ति दे।
तन-तृप्ति दे।।
शांति गर है।
सुघड़ घर है।।
रीत अपनी।
ताप हरनी।।
शांति मन की।
खान धन की।।
हर्ष दात्री।
‘नमन’ पात्री।।
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सुगति छंद / शुभगति छंद विधान –
सुगति छंद जो कि शुभगति छंद के नाम से भी जाना जाता है, 7 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है। यह लौकिक जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 7 मात्राओं का विन्यास पंचकल + गुरु वर्ण (S) है। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-
122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव गुरु (S) से होना चाहिए।)
मात्रिक छंद परिभाषा
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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’ ©
तिनसुकिया

परिचय
नाम- बासुदेव अग्रवाल;
जन्म दिन – 28 अगस्त, 1952;
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान- मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।
मेरा ब्लॉग:-
इतनी कम मात्रा की छंद में भी शांति पर इतने सुसंयत भाव।
आपकी टिप्पणी का बहुत बहुत धन्यवाद।
सुगति छंद में शांति के महत्व को दर्शाती उत्तम रचना।
बहुत बढ़िया भावाभिव्यक्ति।
आपकी रचनाओं में भावों की एकरूपता दिखती है जो कि लेखनी की सिद्धहस्तता को दर्शाती है। शब्द चयन हमेशा ही श्रेष्ठ लगते हैं।
माँ सरस्वती की कृपा हमेशा आप पर रहे और आप निरन्तर नई रचनाएँ लिखते रहे यही कामना है।
शुचिता बहन तुम्हारी हृदय खिलाती प्रतिक्रिया का आत्मिक धन्यवाद।
शुचिता सँजो
प्रतिक्रिया जो
भेजी यहाँ
वैसी कहाँ