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सुगति छंद

‘भगवान हो’

इस सृष्टि में।
हर दृष्टि में।।
तुम व्याप्त हो।
पर्याप्त हो।।

हर कर्म हो।
शुचि धर्म हो।।
कविता तुम्ही।
गीता तुम्ही।।

तुम पूज्यता।
हो सत्यता।।
तुम दिव्यता।
हो लक्ष्यता।।

सुरताल में।
वाचाल में।।
परिपूर्ण हो।
सम्पूर्ण हो।।

मनमीत हो।
मधुगीत हो।।
ममता तुम्ही।
क्षमता तुम्ही।।

साकार हो।
आकार हो।।
आकाश हो।
अविनाश हो।।

लघुता तुम्ही।
गुरुता तुम्ही।।
विज्ञान हो।
संज्ञान हो।।

प्रारब्ध हो।
उपलब्ध हो।।
युक्तार्थ हो।
भावार्थ हो।।

तुम साध्य हो।
आराध्य हो।।
ऋषि संत हो।
ब्रज कंत हो।।

माता कहूँ।
दाता कहूँ।।
सरिता तुम्ही।
सविता तुम्ही।।

संसार से।
भवपार से।।
तुम पार हो।
जग सार हो।।

आधार हो।
तुम प्यार हो।।
आह्वान हो।
भगवान हो।।
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सुगति छंद / शुभगति छंद विधान –

सुगति छंद / शुभगति छंद 7 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है जिसका अंत गुरु वर्ण (S) से होना आवश्यक है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए।
इन 7 मात्राओं का विन्यास पंचकल + गुरु वर्ण (S) है। पंचकल की निम्न संभावनाएँ हैं :-

122
212
221
(2 को 11 में तोड़ सकते हैं, पर अंत सदैव गुरु (S) से होना चाहिए।)

सुगती छंद को शुभगति छंद के नाम से भी जाना जाता है।

मात्रिक छंद परिभाषा

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शुचिता अग्रवाल ‘शुचिसंदीप’
तिनसुकिया, असम

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