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नित छंद

“ज्ञानवापी”

ज्ञानवापी सच यही।
ये न मस्जिद थी रही।।
महादेव बसे जहाँ।
क्यों न फिर मंदिर वहाँ।।

आततायी क्रूर वे।
राज्य मद में चूर वे।।
मुगल शासक जब हुये।
नष्ट मंदिर तब हुये।।

काशी की यही कथा।
नन्दीनाथ की व्यथा।।
दहकाती ज्वाल लगे।
मन में आक्रोश जगे।।

फव्वारा कहें जिसे।
शंभु हम मानें इसे।।
लिंग का प्राकट्य है।
विश्व सम्मुख तथ्य है।।

भग्न मूर्ति मिलीं वहाँ।
कमल, स्वस्तिक भी यहाँ।।
चिन्ह जो सब प्राप्त ये।
क्या नहीं पर्याप्त ये।।

तथ्य सारे जाँचिए।
न्याय हमको दीजिए।।
भव्य मंदिर अब बने।
‘नमन’ जन जन में ठने।।
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नित छंद विधान –

नित छंद 12 मात्रा प्रति चरण का सम मात्रिक छंद है। यह आदित्य जाति का छंद है। एक छंद में कुल 4 चरण होते हैं और छंद के दो दो या चारों चरण सम तुकांत होने चाहिए। इन 12 मात्राओं की मात्रा बाँट – 9 + 1 2 है।
नवकल की निम्न संभावनाएँ हैं –
12222 (2222 को अठकल मान सकते हैं।)
21222 (222 को छक्कल मान सकते हैं।)
22122
22212 (222 को छक्कल मान सकते हैं।)
22221 (2222 को अठकल मान सकते हैं।)
(इन सब में 2 को 11 में तोड़ा जा सकता है।)

अंत के लघु गुरु (12) को नगण (111) के रूप में भी लिया जा सकता है।

मात्रिक छंद परिभाषा

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बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
तिनसुकिया

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