किरीट सवैया “काव्य-मंच”
किरीट सवैया “काव्य-मंच” मंच बढ़े कविता सिमटी अब, फूहड़ हास्य परोस रहे कवि। लुप्त हुए शुचि छंद सनातन, धूमिल होय रही कविता छवि।। मान मिले अरु नाम बढ़े बस, देय रहे कवि काव्यमयी हवि। अंधन
किरीट सवैया “काव्य-मंच” मंच बढ़े कविता सिमटी अब, फूहड़ हास्य परोस रहे कवि। लुप्त हुए शुचि छंद सनातन, धूमिल होय रही कविता छवि।। मान मिले अरु नाम बढ़े बस, देय रहे कवि काव्यमयी हवि। अंधन
मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं। इसकी संरचना 211× 7 + 22 है।
मत्तगयंद सवैया छंद 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है।
यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में दो गुरु वर्ण प्रति चरण में रहते हैं।
किरीट सवैया 24 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 8 आवृत्ति प्रति चरण में रहती है।
वागीश्वरी सवैया विधान – यह 23 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया यगण (122) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति तथा चरण के अंतमें लघु गुरु वर्ण जुड़ने से होती है।
(122 122 122 122 122 122 122 12)
मत्तगयंद सवैया छंद की संरचना प्रति चरण 211× 7 + 22 है।
पाप बढ़े चहुँ ओर भयानक हाथ कृपाण त्रिशूलहु धारो।
रक्त पिपासु लगे बढ़ने दुखके महिषासुर को अब टारो।
मदिरा सवैया विधान –
यह 22 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। यह सवैया भगण (211) पर आश्रित है, जिसकी 7 आवृत्ति और अंत में गुरु प्रति चरण में रहता है। इसकी संरचना 211× 7 + 2 है।
सवैया छंद विधान –
सवैया चार चरणों का वर्णिक छंद है जिसके प्रति चरण में 22 से 26 तक वर्ण रहते हैं। चारों चरण समतुकांत होते हैं। सवैया किसी गण पर आश्रित होता है जिसकी 7 या 8 आवृत्ति रहती है।
दुर्मिल सवैया विधान:
यह 24 वर्ण प्रति चरण का एक सम वर्ण वृत्त है। अन्य सभी सवैया छंदों की तरह इसकी रचना भी चार चरण में होती है और सभी चारों चरण एक ही तुकांतता के होने आवश्यक हैं।
यह सवैया सगण (112) पर आश्रित है, जिसकी 8 आवृत्ति प्रति चरण में रहती है। इसकी संरचना लघु लघु गूरु × 8 है।
नाम– बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’
निवास स्थान – तिनसुकिया (असम)
रुचि – काव्य की हर विधा में सृजन करना। हिन्दी साहित्य की हर प्रचलित छंद, गीत, नवगीत, हाइकु, सेदोका, वर्ण पिरामिड, गज़ल, मुक्तक, सवैया, घनाक्षरी इत्यादि। हिंदी साहित्य की पारंपरिक छंदों में विशेष रुचि है और मात्रिक एवं वर्णिक लगभग सभी प्रचलित छंदों में काव्य सृजन में सतत संलग्न।
सम्मान– मेरी रचनाएँ देश की सम्मानित वेब पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। हिंदी साहित्य से जुड़े विभिन्न ग्रूप और संस्थानों से कई अलंकरण और प्रसस्ति पत्र नियमित प्राप्त होते रहते हैं।